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पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/५८

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“ 7138 पतिव्रत्य की अपेक्षा की जाती है और उसका उल्लंघन करनेवाली स्त्री को कठोर दण्ड दिया जाता है। परन्तु दोनों पक्षों में से कोई भी आसानी से विवाह-मम्बन्ध को तोड सकता है, और बच्चों पर अब भी पहले की तरह माता का ही अधिकार होता है। निरतर अधिकाधिक रक्त-सम्बन्धियों के बीच विवाह पर प्रतिबंध लगाने में नैसर्गिक वरण का भी हाथ बना रहता है। मोर्गन के शब्दो में, जो गोत्र रक्त-सम्बद्ध न थे उनके बीच होनेवाले विवाहो से जो सन्ताने पैदा होती थी वे शरीर और मस्तिष्क दोनो से अधिक बलवान होती थी। जब दो विकासशील कवीले मिलकर एक जन-समूह बन जाते है. तो एक नयी खोपड़ी और मस्तिष्क की उत्पत्ति होती है जिसकी लम्बाई-चौड़ाई दोनों की योग्यताप्रो के योग के बराबर होती है । अतएव , गोत्रो के आधार पर संघटित कवीले अधिक पिछड़े हुए कबीलो पर हावी हो जाते है , या अपने उदाहरण के द्वारा उनको भी अपने साथ- साथ खीच ले चलते है। इस प्रकार प्रागैतिहासिक काल मे परिवार का विकास इसी बात में निहित था कि वह दायरा अधिकाधिक सीमित होता जाता था, जिसमे पुरुप और नारी के बीच वैवाहिक सम्बन्ध की स्वतंत्रता थी। शुरू मे पूरा कबीला इस दायरे मे आ जाता था। लेकिन बाद मे, पहले इस दायरे मे नज़दीकी सम्बन्धी धीरे-धीरे निकाल दिये गये , फिर दूर के सम्बन्धी अलग कर दिये गये , और अन्त में तो उन तमाम सम्बन्धियो को भी निकाल दिया गया जिनका केवल विवाह का सम्बन्ध था। इस तरह अन्त मे, हर प्रकार का यूथ-विवाह व्यवहार में असंभव बना दिया गया। आखिर में केवल एक, फिलहाल वहुत ढीले बंधनों से जुड़ा , जोड़ा ही बचा , जो एक अणु की भाति होता है , और जिसके भंग हो जाने पर स्वयं विवाह ही पूरी तरह नष्ट हो जाती है। इसी एक वात से यह स्पष्ट हो जाता है कि एकनिष्ठ विवाह की उत्पत्ति मे, व्यक्तिगत यौन-सम्बन्ध का इस शब्द के आधुनिक अर्थ मे कितना कम हाथ रहा है। इस अवस्था मे लोगों के व्यवहार से इसका एक और सबूत मिल जाता है। परिवार के पुराने रूपो के अन्तर्गत पुरुषो को कभी स्त्रियो की कमी नही होती थी, वल्कि सदा बाहुल्य ही रहता था, लेकिन अब इसके विपरीत, स्त्रियो की कमी होने लगी और उनकी तलाश की जाने लगी। अतएव युग्म-विवाह के साथ-साथ स्त्रियो को भगाना और ख़रीदना