॥ PT अठारहवी सदी के जागरण काल से विरासत में मिली है। सभी जांगल लोगो में , और निम्न तथा मध्यम अवस्था की, यहां तक कि पाशिक रूप से उन्नत अवस्था की वर्वर जातियो मे भी, नारी को स्वतन्त्र ही नहीं, बल्कि बढे आदर और सम्मान का भी स्थान प्राप्त था। आर्थर राइट ने सेनेका इरोक्वानो के बीच बहुत वर्ष तक मिशनरी का काम किया था। युग्म-परिवार मे नारी का क्या स्थान था, इस विषय में उनकी गवाही सुनिए : 'जहा तक उनकी पारिवारिक व्यवस्था का सम्बन्ध है, जब ये लोग पुराने लम्बे घरों में रहते थे..." ( सामुदायिक कुटुम्बों में, जिनमे कई परिवार साथ-साथ रहते थे) "तो सम्भवतः उनमे एक कुल (गीत) "की प्रधानता रहती थी, और स्त्रियां दूसरे कुलों" (गोली) के पुरुषो को अपना पति बनाती थी... घर में प्रायः नारी पक्ष शासन करता था। घर का भण्डार सब का सामूहिक होता था परन्तु यदि कोई अभागा पति या प्रेमी इतना नालायक होता था कि वह अपने हिस्से का सामान न जुटा पाये , तो उसकी मुसीवत आ जाती थी। फिर चाहे उसके कितने ही बच्चे हों और घर में चाहे उसका कितना ही सामान हो, उसे किसी भी समय बोरिया-बिस्तर उठाने का नोटिस मिल सकता था। और उसकी खैरियत इसी में थी कि एक वार ऐसा आदेश मिल जाने पर उसका उल्लंघन करने की कोशिश न करे। उसके लिये घर मे ठहरना अपनी शामत बुलाना होता और उसे अपने कुल" (गोत्र ) “मे लौट जाना पडता था, या जैसा कि अक्सर होता था, किसी और गोत्र मे जाकर उसे एक नया वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करनी पड़ती थी। अन्य सब स्थानी की भाति कुलो” (गोत्रो) “में भी मुख्य शक्ति स्त्रियो की होती थी। जरूरत होती थी, तो वे गोत्र के मुखिया को उसके पद से हटाकर साधारण योद्धाओं की पांत मे वापस भेज देने में नहीं हिचकिचाती थी। 7199 आदिम काल मे आम तौर पर पाये जानेवाले स्त्रियों के प्राधान्य का भौतिक प्राधार यह सामुदायिक कुटुम्ब था, जिसकी अधिकतर स्त्रियां और यहां तक कि सभी स्त्रियां, एक ही गोन की होती थी और पुरुष दूसरे विभिन्न गोत्रों से प्राते थे। और वाखोफेन ने इस सामुदायिक कुटुम्ब पता लगाकर तीसरी महान सेवा अर्पित की है। साथ ही दू कि यात्रियों तथा मिशनरियो की ये रिपोर्ट कि जागल तथा यबर लोगो में स्त्रियो को कठोर परिश्रम करना पड़ता है, उपरोक्त तथ्य का खण्डन का यह भी जोड
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