पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/६८

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ओर तो परिवार के अन्दर नारी की तुलना में पुरुप का दर्जा पयादा और के कारण परिवार में एक नये तत्त्व का प्रवेश हो गया था। सगी मा के साय-गाथ अब प्रमाणित सगा याप भी मौजूद था, जो शायद प्राजकन के वहुत-से "यापो" से अधिक प्रमाणित था। परिवार के अन्दर उस जमाने में जिस श्रम-विभाजन का चलन था, उसके अनुसार प्राहार जुटाने और उसके लिये आवश्यक प्रौजार तैयार करने का काम पुरप का था, इमलिये इन प्रौजारी पर उसी का अधिकार होता था। पति-पत्नी अलग होते थे तो जिस प्रकार घर का सामान स्त्री के पास रहता था, उसी प्रकार पुरुप इन प्रौजारो को अपने साथ ले जाता था। अतएव उस जमाने की सामाजिक रीति के अनुसार, प्राहार-संग्रह के इन नये साधनों का - यानी पशुओ का, और बाद में श्रम के नये साधनो का, यानी दासों का भो- मालिक पुरुष हुआ। परन्तु , उसी समाज की रीति के अनुसार, पुरष की सतान उसकी सम्पत्ति को उत्तराधिकार मे नही पाती थी। इस मामले मे स्थिति इस प्रकार थी। मातृ-सत्ता के अनुसार, यानी जब तक कि वंश केवल स्त्री-परंपरा के अनुसार चलता रहा, और गोन की मूल उत्तराधिकार-प्रथा के अनुसार, गोन के किसी सदस्य के मर जाने पर उसकी सम्पत्ति पहले उसके गोत्र के सम्बन्धियो को मिलती थी। यह आवश्यक था कि सम्पत्ति गोत्न के भीतर ही रहे। शुरू में चूकि सम्पत्ति साधारण होती थी, इसलिये सम्भव है कि व्यवहार में वह सबसे नजदीकी गोत्र-सम्बन्धियो को, यानी मा की तरफ के रक्त-सम्बन्धियो को मिलती रही हो। परन्तु मृत पुरुष के बच्चे उसके गोत्र के नहीं, बल्कि अपनी मां के गोत्र के होते थे। शुरू में अपनी मां के दूसरे रक्त-सम्बन्धियो के साथ-साथ बच्चों को भी मां की सम्पत्ति का एक भाग मिलता था, और शायद बाद मे, उस पर उनका पहला अधिकार मान लिया गया हो। परन्तु उन्हे अपने पिता की सम्पत्ति नहीं मिल सकती थी, क्योकि वे उसके गोत्र के सदस्य नहीं होते थे, और उसकी सम्पत्ति का उसके गोत्र के अन्दर रहना आवश्यक था। अतएव पशुओं के रेव के मालिक के भर जाने पर, उसके रेवड़ पहले उसके भाइयो और बहनो को और बहनो के बच्चो को, या उसकी मौसियो के वंशजों को मिलते थे। परन्तु उसके अपने बच्चे उत्तराधिकार से वंचित थे। इस प्रकार जैसे-जैसे सम्पत्ति बढ़ती गयी, वैसे-वैसे इसके कारण एक