. और भेड-बकरियो के रेवड़ों के, एक कुटुम्व-समुदाय के मुखिया होने के नाते स्वामी प्रतीत हुए थे या किसी गोत्र के वंशपरम्परागत प्रमुख होने के नाते। परन्तु एक बात निश्चित है और वह यह कि हम इब्राहीम को आधुनिक अर्थ में सम्पदा का स्वामी नहीं कह सकते। साथ ही यह बात भी निश्चित है कि प्रामाणिक इतिहास के प्रारम्भ में ही हम यह पाते हैं कि पशुओं के रेवड़, परिवार के मुखियात्रों की अलग सम्पदा उसी तरह होते थे, जिस तरह बर्बर युग की कला-कृतियां, धातु के बर्तन , ऐश-पाराम के सामान और अन्त में मानव-पशु यानी दास , मुखियाओं को अलग-अलग सम्पत्ति होते थे। कारण कि अब दास-प्रथा का भी आविष्कार हो चुका था। बर्बर युग की निम्न अवस्था के लोगों के लिए दास व्यर्थ थे। यही कारण था कि अमरीकी इंडियन युद्ध में पराजित अपने शत्रुनों के साथ जो व्यवहार करते थे, वह इस युग की उन्नत अवस्था के व्यवहार से बिलकुल भिन्न था। पराजित पुरषों को या तो मार डाला जाता था, या विजयी कबीला उन्हें अपने भाइयो के रूप में स्वीकार कर लेता था। स्त्रियों से या तो विवाह कर लिया जाता था या उन्हें भी, मय उनके बचे हुए बच्चो के , कबीले का सदस्य बना लिया जाता था। अभी मानव श्रम से इतना नहीं पैदा होता था कि थम करनेवाले के जीवन-निर्वाह के खर्च के बाद थोडा-बहुत बच भी रहे। परन्तु जव पशु-पालन होने लगा, धातुरो का इस्तेमाल होने लगा, बुनाई शुरू हो गयी और अन्त मे जब खेत बनाकर खेती होने लगी, तब स्थिति बदल गयी। जिस प्रकार पहले पलियां बड़ी आसानी से मिल जाती थी, पर बाद में उनको विनिमय-मूल्य प्राप्त हो गया था और वे खरीदी जाती थी, उसी प्रकार बाद में, विशेषकर पशुओं के रेवड़ों के पारिवारिक सम्पदा बनाये जाने के बाद , श्रम-शक्ति भी खरीदी जाने लगी। परिवार उतनी तेजी से नहीं बढता था जितनी तेजी से रेवड़ बढते थे। रेवड़ की देख-रेख करने के लिये और आदमियों की जरूरत होती थी। युद्ध में वंदी बनाये गये लोग इस काम के लिये उपयोगी थे। इसके अलावा पशुप्रो की तरह उनकी भी नस्ल वढायी जा सकती थी। इस प्रकार की सम्पदा जव एक बार परिवारो की निजी सम्पत्ति वन गयी और उसकी वहा खूब बढ़ती हुई, तो उसने युग्म-विवाह तथा मातृ- सत्तात्मक गोन पर आधारित समाज पर कठोर प्रहार किया। G •" ६९
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