स्थान पर नये प्रकार के राज्य जनवाद के सर्वोच्च रूप-सर्वहारा के अधिनायकत्व-की स्थापना के ज़रिये ही संपन्न किया जा सकता है।
राज्य विषयक मार्क्सवादी प्रस्थापनाओं का, जिन्हें एंगेल्स ने इतने उत्कृष्ट ढंग से विवेचित किया था, आगे चलकर व्ला॰ इ॰ लेनिन ने अपनी महान रचना 'राज्य और क्रांति' में नये ऐतिहासिक युग के दृष्टिगत सर्वतोमुखी विश्लेषण किया।
१८९० मे एंगेल्स अपनी पुस्तक के नये संस्करण की तैयारी करने लगे, क्योकि तब तक आदिम समाज के इतिहास के बारे में बहुत-सी नयी सामग्री प्रकाश में आ चुकी थी। उन्होंने सारे नये साहित्य का, विशेषतः रूसी विद्वान म॰ म॰ कोवालेव्स्की की रचनाओ का अध्ययन किया, पहले संस्करण के मूलपाठ में बहुत-से परिवर्तन और सुधार किये और बहुत-सी नयी बाते जोड़ी। सर्वाधिक परिवर्द्धन परिवार विषयक अध्याय में किया गया, क्योंकि तब तक पुरातत्त्ववेत्ता और नृवंशशास्त्री कई नई खोजें कर चुके थे (एंगेल्स द्वारा प्रकाशित चौथे संस्करण में किये गये परिवर्तनो को वर्तमान अनूदित संस्करण मे फुटनोट के रूप मे छापा गया है )। किन्तु इन परिवर्तनो और सुधारो ने एगेल्स के निष्कर्षों को प्रभावित नहीं किया। उल्टे, नयी सूचनाओ ने उनकी पुनर्पुष्टि ही की। इन निष्कर्षों ने आगे चलकर भी अपना महत्त्व ज्यों का त्यों बनाये रखा। विज्ञान के परवर्ती विकास ने एंगेल्स की मूल प्रस्थापनाओं की सत्यता को प्रमाणित किया, हालांकि मौर्गन की पुस्तक से ली गयी कुछ बाते नवीनतम वैज्ञानिक सूचनाओ के प्रकाश में थोड़ा-बहुत त्रुटि-सुधार की अपेक्षा करती है (जैसे आदिमयुगीन इतिहास का मौर्गन द्वारा प्रस्तावित कालविभाजन और इस संबंध में प्रयुक्त शब्दावली, आदि)।
'परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति' का एंगेल्स द्वारा संशोधित तथा परिवर्द्धित संस्करण १८९१ के अन्त मे स्टुटगार्ट से प्रकाशित हुआ। आगे चलकर उसमे कोई परिवर्तन नही हुआ। एंगेल्स ने इस सस्करण के लिए नयी भूमिका भी लिखी (देखिये वर्तमान सस्करण, पृ० १२)।
वर्तमान संस्करण १८९१ मे प्रकाशित चौथे जर्मन संस्करण और पहले तथा चौथे सस्करणो की भूमिकाओं का अनुवाद है।