और नारी के विरोध के विकाम के माथ-माथ, और इतिहास का पहला वर्ग-उत्पीड़न पुरुष द्वारा नारी के उत्पीडन के साथ-साथ प्रगट होता है। इतिहास की दृष्टि से एकनिष्ठ विवाह आगे की ओर एक बहुत बड़ा कदम था, परन्तु इसके साथ-साथ वह एक ऐसा कदम भी था जिसने दास-प्रथा और व्यक्तिगत धन-सम्पदा के साथ मिलकर उस युग का श्रीगणेश किया, जो आज तक चला आ रहा है और जिसमें प्रत्येक अप्रगति साथ ही सापेक्ष रूप से पश्चाद्गति भी होती है, जिसमें एक समूह की भलाई और विकास दूसरे समूह को दुख देकर और कुचलकर सम्पन्न होते है। एकनिष्ठ विवाह सभ्य समाज का वह कोशिका-रूप है जिसमे हम उन तमाम विरोधों और द्वन्द्वो का अध्ययन कर सकते हैं जो सभ्य समाज मे पूर्ण विकास प्राप्त करते है। युग्म-परिवार की विजय से, या यहां तक कि एकनिष्ठ विवाह की विजय से भी, उनके पहले पायी जानेवाली यौन सम्बन्धो की अपेक्षाकृत स्वतंत्रता नष्ट नहीं हुई। "प्रगति करते हुए परिवार को अब भी वह पुरानी विवाह-व्यवस्था धेरे रहती है, जो अब 'पुनालुमान' यूथों के धीरे-धीरे मिट जाने के कारण अधिक संकुचित परिधि के अन्दर सीमित हो गयी है, और वह विवाह-व्यवस्था परिवार के साथ-साथ सभ्यता के युग के द्वार तक पहुंच जाती है ... अन्त मे वह हैटेरिएम के नये रूप में तिरोहित हो जाती है, जो परिवार के साथ लगी हुई एक काली छाया के रूप में सभ्यता के युग में भी मानवजाति के पीछे-पीछे चलती है। यहा हैटेरिज्म से मोर्गन का मतलब विवाह के बंधन के बाहर पुरुषों और अविवाहिता स्त्रियों के बीच होनेवाले उस यौन-व्यापार से है, जो एकनिष्ठ विवाह के साथ-साथ चलता है, और जो जैसा कि सभी जानते हैं, सभ्यता के पूरे युग मे भिन्न-भिन्न रूपो मे फूलता-फलता रहा है और खुली वेश्यावत्ति के रूप मे निरन्तर विकसित होता रहा है। इस हैटेरिज्म का सीधा सम्बन्ध यूथ-विवाह से है, उसका सीधा सम्बन्ध स्त्रियो के अनुष्ठानात्मक आत्मसमर्पण की प्रथा से है जिसके द्वारा वे सतीत्व का अधिकार प्राप्त करने का मूल्य चुकाती थी। रुपया लेकर आत्मसमर्पण करना यह शुरू में एक धार्मिक कृत्य था जो प्रेम की देवी के मन्दिर मे किया जाता था और जिससे मिलनेवाला रुपया मन्दिर के कोष मे चला जाता था। आर्मीनिया में अनाइतिस और कोरिण्य में एफ़ोडाइट की हायरोड्यूले और 1968 6 ८३
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