. तक कि वह लड़को के गाय अप्राकृतिक व्यभिचार करने की और प्रवृत्त हुमा और गैनीमीद की पुराण-कया द्वारा उगने स्वयं अपने और अपने देवताग्रो को पतित किया। प्राचीन काल के मर्वाधियः सभ्य और विकगित लोगों में, जहा तक हम उनकी पोज कर पाये है , एकनिष्ठ विवाह की उत्पति इसी प्रकार हुई थी। यह किसी भी हालत में व्यक्तिगत यौन-प्रेम का परिणाम नहीं था, उसके माय तो एकनिष्ठ विवाह की तनिक भी समानता नहीं है, क्योकि इस प्रथा के प्रचलित होने के बाद भी विवाह पहले की ही तरह अपना लाभ देवकर किये जाते रहे। यह परिवार का वह पहला रूप या जो प्राकृतिक कारणों पर नहीं, बल्कि प्रार्थिक कारणों पर प्राधारित था- यानी जो प्राचीन काल की प्राकृतिक ढंग से विकसित सामूहिक सम्पत्ति के ऊपर व्यक्तिगत सम्पत्ति की विजय के आधार पर खड़ा हुआ था। यूनानी लोग तो खुलेअाम स्वीकार करते थे कि एकनिष्ठ विवाह का उद्देश्य केवल यह था कि परिवार मे पुरुष का शासन रहे और ऐसे बच्चे पैदा हो जो केवल उसको अपनी सन्तान हो और जो उसको सम्पत्ति के उत्तराधिकारी बन सकें। इन वातो के अलावा एकनिष्ठ विवाह केवल एक भार था जिसे ढोना पड़ता था; देवताओं के प्रति , राज्य के प्रति और पूर्वजो के प्रति एक कर्तव्य था जिसका पालन करना आवश्यक था। एथेस मे कानून अनुसार न सिर्फ विवाह करना जरूरी था, बल्कि पुरुष द्वारा कुछ तथाकथित वैवाहिक कर्तव्यो का पालन करना भी आवश्यक था। अतएव , एकनिष्ठ विवाह इतिहास मे पुस्प और नारी का पुन सामंजस्य होकर कदापि प्रगट नहीं हुआ। उसे पुरुष और नारी के पुन.सामजस्य का उच्चतम रूप समझना तो और भी गलत है। इसके विपरीत एकनिष्ठ निवाह , नारी पर पुरुष के आधिपत्य के रूप में प्रगट होता है। एकनिष्ठ निवाह के रूप मे पुरुषो और नारियो के एक ऐसे विरोध की घोषणा की गयी थी जिसकी मिसाल प्रागैतिहासिक काल मे कही नही मिलती। मार्म की और अपनी एक पुरानी पाडुलिपि में, जो अभी तक प्रकाशित नही हुई है और जिसे हम लोगों ने १८४६ मे लिखा था, मैं नीचे लिखा वाक्य पाता हूं : "सन्तानोत्पत्ति के लिये पुरुष और नारी के बीच श्रम-विभाजन ही पहला श्रम-विभाजन है। " और आज मै इसमें ये शब्द और जोड सकता हूं : इतिहास में पहला वर्ग-विरोध , एकनिष्ठ विवाह के अन्तर्गत पुरष के .. ८२
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