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परीक्षा गुरु
९२.
 


मुझको दिनभर रोजग़ार धंधा करना पड़ता है, आपका सब दिन हंसी दिल्लगी की बातों में जाता है. मैं दिन भर पैदल भटकता हूँ, आप सवारी बिना एक कदम नहीं चलते. मेरे रहने की एक से झोंपडी, आप के बड़े-बड़े महल. मुल्क में अकाल हो, ग़रीब बेचारे भूखों मरते हों, आप के यहां दिन रात ये ही हाहा-हीही रहेगी. सच है आप पर उनका क्या हक़ है? उससे आपका क्या संबन्ध है? परमेश्वर ने आप को मनमानी मौज करने के लिये दौलत दे दी फिर औरों के दु:ख दर्द में पड़ने की आप को क्या ज़रूरत रही है आपके लिये नीति अनीति की कोई रोक नहीं है. आप-" है। “क्यों जी! तुम अपनी बकवास नहीं छोड़ते अच्छा जमादार इनको हाथ पकड़ कर यहां से बाहर निकाल दो और इनकी गठरी उठाकर गली में फेंक दो” मुन्शी चुन्नीलाल ने हुक्म दिया.

“मुझको उठाने की क्या ज़रूरत है? मैं आप जाता हूं परंतु तुमने बेसबब मेरी इज्जत ली है इसका परिणाम थोड़े दिन में देखोगे. जिस तरह राजा द्रुपद ने बचपन में द्रोणाचार्य से मित्रता करके राज पाने पर उनका अनादर किया तब द्रोणाचार्य ने कौरव पांडवों को चढ़ा ले जाकर उसकी मुश्कें बंधवा ली थीं और चाणक्य ने अपने अपमान होने पर नन्द वंश का नाश करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दिखाई थी. पृथ्वीराज ने संयोगिता के बसवर्ती होकर चन्द और हाहुली राय को लौंडियों के हाथ पिटवाया तब हाहुली राय ने उसका बदला पृथ्वीराज से लिया था, इसी तरह परमेश्वर ने चाहा तो मैं भी इसका बदल आप से लेकर रहूँगा."