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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१०२

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परीक्षा गुरु
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चित्त को ज़रा उद्वेग हो रहा है इसी से अकल काम नहीं देती" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

"क्यों तुम्हारे चित्त के उद्वेग का क्या कारण है? क्या हरकिशोर की धमकी से डर गए? ऐसा हो तो विश्वास रखो कि मेरी सब दौलत ख़र्च हो जायगी तो भी तुम्हारे ऊपर आंच न आने दूँगा” लाला मदनमोहन ने कहा.

"नहीं, महाराज! ऐसी बातों से मैं कब डरता हूंँ? और आपके लिये जो तक़लीफ़ मुझको उठानी पड़े, उसमें तो और मेरी इज्जत है. आपके उपकारों का बदला मैं किसी तरह नहीं दे सकता, परन्तु लड़की के ब्याह के दिन बहुत पास आ गये, तैयारी अब तक कुछ नहीं हुई, ब्याह आपकी नामवरी के मूजिब करना पडेगा, इसलिए इन दिनों मेरी अकल कुछ गुमसी हो रही है" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

"तुम धैर्य रखो तुम्हारी लड़की के ब्याह का सब ख़र्च हम देंगे” लाला मदनमोहन ने एकदम हामी भर ली.

“ऐसी सहायता तो इस सरकार से सब को मिलती ही है, परन्तु मेरी जीविका का वृत्तान्त भी आपको अच्छी तरह मालूम है और घर गृहस्थी का खर्च भी आपसे छिपा नहीं है, भाई ख़ाली बैठे हैं जब आपके यहांँ से कुछ सहायता होगी तो ब्याह का काम छिड़ेगा कपड़े लत्ते वगैरह की तैयारी में महीनों लगते हैं” मुन्शी चुन्नीलालों कहा.

“लो; ये दो सौ रुपये के नोट लेकर इस्समय तो काम चलता कर, और बातों के लिये बंदोबस्त पीछे से कर दिया जायगा" लाला मदनमोहन ने नोट देकर कहा.