संबन्ध है वह भी मन लगा कर अखबार नहीं देखते बल्कि कोई-कोई तो अखबार के एडीटरों को प्रसन्न रखने के लिये अथवा ग्राहकों के सूचीपत्र में अपना नाम छपाने के लिये
अथवा अपनी मेंज़ को नए-नए अख़बारों से सुशोभित करने के लिये अथवा किसी समय अपना काम निकाल लेने के लिये अख़बार ख़रीदते हैं! जिसपर अखबार निकालने वालों की यह दशा है! लाला मदनमोहन इस ख़त को पढ़ कर सहायता करने के लिये बहुत ललचाये परन्तु रुपये की तंगी के कारण तत्काल कुछ न कर सकें.
“हुजूर! मिस्टर रसल के पास रुपये आज भेजने चाहिये” मुन्शी चुन्नीलाल ने डाक देख पीछे याद दिवाई.
"हां! मुझको बहुत ख़याल है परन्तु क्या करू? अबतक कोई बानक नहीं बना" लाला मदनमोहन बोले.
"थोडी बहुत रक़म तो मिस्टर ब्राइट के यहां भी ज़रूर भेजनी पडे़गी" मास्टर शिंभूदयाल ने अवसर पाकर कहा.
"हां, और हरकिशोर ने नालिश कर दी तो उससे जवाबदेही करने के लिये भी रुपये चाहेंगे" लाला मदनमोहन चिंता करने लगे.
"आप चिन्ता न करें, ज्योतिष से सब होनहार मालूम हो सकता है." चाणक्य ने कहा है “का ऐश्वर्य बिशाल मै का मोटे दु:ख पाहिं। रस्सी बांध्यो होय जों पुरुष दैव बस माहिं।"* इसलिये आपको कुछ आगे का वृत्तान्त जानना हो तो आप प्रश्न करिये,
ऐश्वर्ये वासुविरतीर्ण व्यसनें वापि दारुणे॥
रज्जेव पुरषो बद्धः क्वतांतेनोपनीयते॥