पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१११

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प्रिय अथवा पिय्
 


करनी चाहिये जिससे कुछ लाभ हो” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

"आप हुक्म दें तो मैं कुछ अर्ज़ करूँ?" बिहारी बाबू बहुत दिन से अवसर देख रहे थे वह धीरे से पूछने लगे.

"अच्छा कहो” मुन्शी चुन्नीलाल ने मदनमोहन के कहने से पहले ही कह दिया.

"भोजला पहाड़ी पर एक बड़े धनवान जागीरदार रहते हैं. उनको ताश खेलने का बड़ा व्यसन है. वह सदा बाज़ी बद कर खेलते हैं और मुझको इस खेल के पत्ते ऐसी राह से लगाने आते हैं कि जब खेलें तब अपनी ही जीत हो. मैंने उनको कितनी ही बार हरा दिया इसलिये अब वह मुझको नहीं पतियाते परंतु आप चाहें तो मैं वह खेल आप को सिखा दूं फिर आप उनसे निधड़क खेलें, आप हार जायेंगे तो वह रकम मैं दूँगा और जीतें तो उसमें से मुझको आधी ही दें” बिहारी बाबू ने जुए का नाम छिपाकर मदनमोहन को आसामी बनाने के वास्ते कहा.

"जीतेंगे तो चौथाई देंगे परंतु हारने के लिये रकम पहले जमा करा दो” मुन्शी चुन्नीलाल लाला मदनमोहन की तरफ़ से मामला करने लगे.

“हारने के लिये पहले पाँच सौ की थैली अपने पास रख लीजिये परंतु जीत में आधा हिस्सा लूंगा” बिहारी बाबू हुज्जत करने लगे.

"नही, जो चुन्नीलाल ने कह दिया वह हो चुक, उससे अधिक हम कुछ न देंगे” लाला मदनमोहन ने कहा.

और बडी मुश्किल से बिहारी बाबू उस पर कुछ-कुछ राज़ी