"संस्कृत विद्या की तो आजकल के सब विद्वान एक खर होकर प्रशंसा करते हैं परंतु इस समय ज्योतिष की चर्चा थी सो निस्सन्देह ज्योतिष में फलादेश की पूरी बिध नहीं मिलती शायद बताने वालों की भूल हो, तथापि मैं इस विषय में किसी समय तुम से प्रश्न करूँगा और तुम्हारी विध मिल जायेगी तो तुम्हारा अच्छा सत्कार किया जायेगा” लाला मदनमोहन ने कहा और यह बात सुनकर पंडितजी के हर्ष की कुछ हद न रही.
दमयन्ति बिलपतहुती बनमें अहि भय पाइ
अहिबध बधिक अधिक भयो ताहूते दुखदाइ.
नलोपाख्याने.
ज्योतिष की विध पूरी नही मिलती इसलिये उसपर विश्वास नहीं होता परंतु प्रश्न का बुरा उत्तर आये तो प्रथम ही से चित्त ऐसा व्याकुल हो जाता है कि उस काम के अचानक होंने पर भी वैसा नहीं होता, और चित्त का असर ऐसा प्रबल होता है कि जिस वस्तु की संसार में सुष्टि ही न हो वह भी वहम समाज में तत्काल दिखाई देने लगती है. जिसपर ज्योतिषी ग्रहों का उलट-पुलट नहीं कर सकते, अच्छे-बुरे फल को बदल नहीं सकते, फिर प्रश्न करने से लाभ क्या? कोइ ऐसी बात