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परीक्षा गुरु
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के समय मनुष्य की नीयत ठिकानें नहीं रहती परंतु जुए के लेन-देन बाबत अदालत की डिग्री का डर नहीं है तो भी जुआरी अपना सब माल अस्बाब बेचकर लेनदारों की कौड़ी-कौड़ी चुका देता है. उसके पास रुपया हो तो वह उसे लुटाने में हाथ नहीं रोकता और अपने काम में ऐसा निमग्न हो जाता है कि उसे खाने-पीने तक की याद नहीं रहती, उसके पास फूटी कौड़ी न रहे तो भी वह भूखों नहीं मरता. फडपर जाते ही जीते जुआरी दो-चार गंडे देकर उसका काम अच्छी तरह चला देते हैं.”

"राम! राम! दिवाली पर क्या? समझदार तो स्वप्न में भी जुए के पास नहीं जाते. जुए से व्यापार का क्या संबंध? उसकी कुछ सूरत मिलती है तो बदनी से मिलती है पर उसको जुए से अलग कौन समझता है? उसको प्रतिष्ठित साहूकार कब करते हैं? सरकार में उसकी धुनाई कहां होती है? निरी बातों का जमा ख़र्च व्यापार में सर्वथा नहीं गिना जाता, व्यापार के तत्व ही जुदे हैं, भविष्यत काल की अवस्था पर दृष्टि पहुंचाना, परता लाना, माल का ख़रीदना, बेचना या दिसावर को बीजक भेजकर माल मंगाना और माल भेजकर बदला भुगताना व्यापार है परंतु जुए में यह बातें कहां? जुआ तो सब अधर्मों की जड़ है. मनु और विदुर जी एक स्वर से कहते हैं "सुनो पुरातन बात, जुआ कलह को मूल है॥ हांसीहूं मैं तात, तासों नहीं खेलैं चतुर॥”* बाबू बैजनाथ ने कहा.

"आप वृथा तेज़ होते हैं मैं खुद जुए का तरफदार नहीं हूं.


द्यूतमेत्तपुराकल्पे दृष्टं बैरकरम् महत॥
तस्मात् द्यूतन्नसेवेत हास्यार्थमपि बुद्धिमान्।