पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
प्रिय अथवा पिय्.
 


परंतु विवाद के समय अच्छी-अच्छी युक्तियों से अपना पक्ष प्रबल करना चाहिये. क्रोध करके गाली देने से जय नहीं होती. आपकी दृष्टि में मैं झूठा हूं परंतु मेरी सदुक्तियों को आप झूठा नहीं ठहरा सकते. मुझपर पर किसी तरह का दोषारोपण किया जाय तो उसको युक्तिपूर्वक साबित करना चाहिये और, और बातों में मेरी भूल निकालने से क्या वह दोष साबित हो जायगा?”

"जुए का नुक्सान साबित करने के लिये विशेष परिश्रम नहीं करना पडे़गा. देखो नल और युधिष्ठिरादि की बर्बादी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है” बाबू बैजनाथ बोले.

“मैं आप से कुछ अर्ज नहीं कर सकता परंतु-" “बसजी! रहने दो बाबू साहब कुछ तुम से बहस करने के लिये इस समय यहां नहीं आए" यह कहकर लाला मदनमोहन बाबू बैजनाथ को अलग ले गए और हरकिशोर की तकरार का सब वृतान्त थोडे़ में उन्हें सुना दिया.

“मैं पहले हरकिशोर को अच्छा आदमी समझता था परंतु कुछ दिन से उसकी चाल बिल्कुल बिगड़ गई. उसको आपकी प्रतिष्ठा का बिल्कुल विचार नहीं रहा और आज तो उसने ऐसी ढिठाई की कि उसको अवश्य दंड होना चाहिये था सो अच्छा हुआ कि वह अपने आप यहां सें चला गया. उसके चले जाने से उसके सब हक़ जाते रहे. अब कुछ दिन धक्के खाने से उसकी अकल अपने आप ठिकानें आ जायेगी."

“और उसने नालिश कर दी तो?" लाला मदनमोहन घबराकर बोले.