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परीक्षागुरु.
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उसी के बसबर्ती ही रहे हो” बाबू बैजनाथ कहने लगे "मनुष्य बुद्धि के कारण और जीवों से उत्तम है फिर जिसके पान से बुद्धि में विकार हो, किसी काम के परिणाम की खबर न रहे, हरेक पदार्थ का रूप और से और जाना जाय. स्वेच्छाचार की हिम्मत हो काम क्रोधादि रिपु प्रबल हों, शरीर जर्जर हो यह कैसे अच्छी समझी जाय?

“यों तो गुणदोष से ख़ाली कोई चीज़ नहीं है परंतु थोड़ी शराब लेने से शरीर में बल और फुर्ती तो ज़रूर मालूम होती है” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“पहले थोड़ी शराब पीने से निःसंदेह रुधिर की गति तेज़ होती है, नाड़ी बलवान होती है और शरीर में फुर्ती पाई जाती है परंतु पीछे उतनी शराब का कुछ असर नहीं मालूम होता इसलिये वह धीरे धीरे बढ़ानी पड़ती है. उसके पान किये बिना शरीर शिथिल हो जाता है, अन्न हजम नहीं होता. हाथ-पांव काम नहीं देते पर बढाने से बढते-बढते वो ही शराब प्राण घातक हो जाती है. डाक्टर पेरेरा लिखते हैं कि शराब से दिमाग और उदर आदि के अनेक रोग उत्पन्न होते हैं डाक्टर, कारपेंटर ने इस बाबत एक पुस्तक रची है जिसमें बहुत प्रसिद्ध डाक्टरों की राय से साबित किया है कि शराब से लकवा, मंदाग्नि, बाद, मूत्ररोग, चर्मरोग, फोड़ा-फुन्सी और कंपवायु आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, शराबियों की दुर्दशा प्रतिदिन देखी जाती है. कभी-कभी उनका शरीर सूखे काठ की तरह अपने आप भभक उठता है, दिमाग में गर्मी बढ़ने से बहुधा लोग बावले हो जाते हैं”