"शराब में इतने दोष होते तो अंग्रेजों में शराब का इतना रिवाज हरगिज न पाया जाता” मास्टर शिंभूदयाल बोले.
"तुमको मालूम नहीं है. बलायत के सैकड़ों डाक्टरों ने इसके विपरीत राय दी है और वहां सुरापान निवारणी सभा के द्वारा बहुत लोग इसे छोड़ते जाते हैं परंतु वह छोड़ें तो क्या और न छोडे़ं तो क्या? इन्द्र के परस्त्री(अहिल्या) गमन से क्या वह काम अच्छा समझ लिया जायगा? अफसोस! हिन्दुस्तान में यह दुराचार दिन-दिन बढ़ता जाता है. यहां के बहुत से कुलीन युवा छिप-छिपकर इसमें शामिल होने लगे हैं पर जब इंग्लैंड जैसे ठंडे मुल्क में शराब पीने से लोगों की यह गत होती है तो न जानें हिन्दुस्थानियों का क्या परिणम होगा और देश की इस दुर्दशा पर कौन-से देश हितैषी की आंखों से आंसू न टपकेंगे”
“अब तो आप हद से आगे बढ चले" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
नहीं, हरगिज़ नहीं, मैं जो कुछ कहता हूं यथार्थ कहता हूं" देखो इसी मदिरा के कारण छप्पन कोटि यादवों का नाश घड़ी भर में हो गया. इसी मदिरा के कारण सिकंदर ने भरी जवानी में अपने प्राण खो दिये. मनुस्मृति में लिखा है “द्धिजघाती, मद्यप बहुरि चोर, गुरु,स्त्री मीत॥ महापात की है सोऊ जाकी इनसों प्रीति. इसी तरह कुरान में शराब के स्पर्श तक का महादोष लिखा है”
"आज तो बाबू साहब ने लाला ब्रजकिशोर की गद्दी दबा ली" मुन्शी चुन्नीलाल ने मुस्कुर कर कहा.