पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१२३

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सुरा(शराब)
 

"जब वह मेरे पीछे मेरा ठट्टा उड़ाते हैं तो मेरे मित्र कहां रहे? जब तक वह मेरे कामों के लिये केवल मुझसे झगडते थे मुझ को कुछ विचार न था परंतु जब वह मेरे पासवालों को छेड़ने लगे तो मैं उनको अपना मित्र कभी नहीं समझ सकता" लाला मदनमोहन बोल उठे.

"सच तो यह है कि सब लोग आप की इस बरदाश्त पर बड़ा आश्चर्य करते हैं” मुंशी चुन्नीलाल ने अवसर पाकर बात आगे बढ़ाई.

"आपको लाला ब्रजकिशोर का इतना क्या दबाव है? उनसे आप इतने क्यों दबते हैं?” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“सच है मैं अपनी दौलत खर्च करता हूं इसमें उनकी गांठ का क्या जाता है? और वह बीच-बीच में बोलनेवाले कौन हैं?" लाला मदनमोहन तेज़ होकर कहने लगे.

“इस तरह हर बात में रोक-टोक होने से बात का गुमर नहीं रहता, नौकरों को मुकाबला करने का हौसला बढ़ता जाताह है और आगे चल कर काम-काज में फर्क आने की सूरत हो चली है” मुन्शी चुन्नीलाल ले बढ़ाने लगे.

"मैं अब उनसे हरगिज नहीं दूंगा. मैंने अब तक दब दबकर वृथा उनको सिर चढ़ा लिया" लाला मदनमोहन ने प्रतिज्ञा की.

"जो वह झरने के सरोवरों में अपना तैरना और तिबारी के ऊपर से कलामुंडी खा-खाकर कूदना देखेंगे तो फिर घंटों तक उनका राग काहे को बन्द होगा?” पंडित पुरुषोतमदास बड़ी देर से बोलने के लिये उमाह रहे थे वह झट-पट बोल उठे.