"राम-राम उन्का ढंग तो दुनिया से निराला है. वह क्या अपनी बात-चीत में किसी को एक अक्षर बोलने देते हैं” मास्टर शिंभूदयाल बोले.
"उनकी कहन क्या है आर्गन बाजा हैं. एक बार चाबी दे दी घंटों बजता रहा." मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
"मैंने तो कल ही कह दिया था कि ऐसे फिलासफर विद्या संबंधी बातों में भले ही उपकारी हों संसारी बातों में तो किसी काम के नहीं होते" मास्टर शिंभूदयाल बोले.
"मुझको तो उनका मन भी कुछ अच्छा नहीं मालूम देता" लाला मदनमोहन आप ही बोल उठे.
“आप उनसे ज़रा हरकिशोर की बाबत बातचीत करेंगे तो रहा सहा भेद और खुल जायगा. देखें इस विषय में वह अपने भाई की तरफदारी करते हैं या इन्साफ़ पर रहते हैं” मुन्शी चुन्नीलाल ने पेंच से कहा.
“क्या कहें? हमारी आदत निन्दा करने की नहीं है. परसों शाम को लाला साहब मुझसे चांदनी चौक में मिले थे आंख की सैन मारकर कहने लगे आजकल तो बड़े गहरों में हो. हम पर भी थोड़ी कृपादृष्टि रखा करो” मास्टर शिंभूदयाल ने मदनमोहन का आशय जानते ही जड़ दी.
“हैं! तुमसे ये बात कही?” लाला मदनमोहन आश्चर्य से बोले.
“मुझसे तो सैकड़ों बार ऐसी नोंक-झोंक हो चुकी है. परंतु मैं कभी इन बातों का विचार नहीं करता।" मुन्शी चुन्नी लाल ने मिलती में मिलाई.