खेल से अलग होकर स्वेच्छाचार समझा जायगा यह स्वेच्छाचार अत्यंत दूषित है और इस्का परिणाम महा भयङ्कर होता है इस लिये वर्तमान समय के अनुसार सब के फायदे की बातों पर सत् शास्त्र और शिष्टाचार की एकता सै बरताव करना सच्ची स्वतन्त्रता है और बड़े लोगों ने स्वतन्त्रता की यह हद बांध दी है. मनुमहाराज कहते हैं "बिना सताए काहु के धोरे धर्म्म बटोर॥ जों मृत्तिका दीमक हरत क्रम क्रमसों चहुंओर॥*"[१] महाभारत कर्णपर्व मैं युधिष्ठिर और अर्जुन का बिगाड़ हुआ उस्समय श्रीकृष्णनें अर्जुन से कहा है कि "धर्म्म ज्ञान अनुमानते अतिशय कठिन लखाय॥ एक धर्म्म है वेद यह भाषत जनसमुदाय॥ १ तामैं कछु संशय नहीं पर लख धर्म अपार॥ स्पष्टकरन हित कहुं कहूं पंडित करत विचार॥ २ जहां न पीडित होय कोउ सोसुधर्म निरधार॥ हिंसक हिंसा हरनहित भयो सुधर्म प्रचार ३†[२] प्राणिनकों धारण करे ताते कहियत धर्म्म॥ जासों जन रक्षित रहैं सो निश्चय शुभकर्म॥ ४ जे जन परसंतोष हित करैं पाप शुभजान॥ तिनसों
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- धर्म्मं शनस्सं चिंनुयाइहल्मीक मिव पुत्तिका॥
परलोक सहायार्थं सर्व भूतान्ध पीडयन्॥
- धर्म्मं शनस्सं चिंनुयाइहल्मीक मिव पुत्तिका॥
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† दुष्करं परमं ज्ञानं तणानु व्यवस्मति॥
श्रुतेर्धर्म इतित्द्ये के बदंति बहवोजनाः॥ १
तत्तेन प्रत्यसूयामि नचसर्वं विधीयते॥
प्रभवार्थार्यभूतानां धर्म प्रवचनं कृतं॥ २
यतस्याद हिंसा संयुक्तं सधर्मइति निश्चयः॥
अहिंसार्थाय हिंस्त्राणां धर्म प्रवचनं कृतं ॥ ३