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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१३१

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स्वतंत्रता और स्वेच्छाचार
 

कबहुं न बोलिये श्रुति विरुद्ध पहिचान॥ ५" x[] इसलिये दूसरेकी प्रसन्नता के हेतु अधर्म्म करनें का किसी को अधिकार नहीं है इसी तरह अपनें या औरों के लाभ के लिये दूसरे के वाजवी हकों मैं अन्तर डालनें का भी किसी को अधिकार नहीं है जिस्समय महाराज रामचन्द्रजी ने निर्दोष जनकनंदनी का परित्याग किया जानकीजी को कुछ थोड़ा दुःख था? परंतु वह गर्भनाश के भय सै अपना शरीर न छोड़ सकीं हां जिस्तरह उन्हें अकारण अत्यंत दुःख पानें पर भी कभी रघुनाथजी के दोष नहीं विचारे थे इस तरह सब प्राणियों को अपने विषय मैं अपराधी के अपराध क्षमा करने का पूरा अधिकार है और इस तरह अपने निज के अपराधों का क्षमा करना मनुष्यमात्र के लिये अच्छे से अच्छा गुण समझा जाता है परंतु औरों को किसी तरह की अनुचित हानि हो वहां यह रीति काम मैं नहीं लाई जा सक्ती"

"मैं तो यह समझता हूं कि मुझ सै एक मनुष्य का भी कुछ उपकार हो सके तो मेरा जन्म सफल है" लाला मदनमोहन ने कहा.

"जिस्मैं नामवरी आदि स्वार्थका कुछ अंश हो वह परोपकार नहीं और परोपकार करने मैं भी किसी ख़ास मनुष्य का पक्ष किया जाय तो बहुधा उस्के पक्षपात सै औरों की हानि होने का डर रहता है इसलिये अशक्त अपाहजों का पालन पोषण करना,


  1. + धारणाद्धर्म मित्याहु र्धर्मो धारयते प्रजाः॥
    यत्स्या द्धारण संयुक्तं सधर्मइति निश्चयः॥ ४
    येन्यायेन जिहीर्षंतो धर्ममिच्छंति कर्हिचित्॥
    अकूजनेन मोक्षं वा नानुकूजेत् कथंचन॥ ५