पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१४१

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स्वतन्त्रता.
 

पर गुस्से मैं कैसे भर गए? शिंभूदयाल नें तो कोई बात प्रगट मैं ब्रजकिशोर के अप्रसन्न होने़ लायक़ नहीं कही थी? निस्सन्देह प्रगट मैं नहीं कही परन्तु भीतर से ब्रजकिशोर का हृदय बिदीर्ण करनें के लिये यह साधारण बचन सबसे अधिक कठोर था. ब्रजकिशोर और सब बातों मैं निरभिमानी थे परन्तु अपनी ईमानदारी का अभिमान रखते थे इस लिये जब शिंभूदयाल ने उन्की ईमानदारी मैं बट्टा लगाया तब उन्को क्रोध आए बिना न रहा. ईमानदार मनुष्य को इतना खेद और किसी बात से नहीं होता जितनां उस्को बेईमान बतानें सै होता है.

"आप क्रोध न करें. आप को यहां की बातों मैं अपना कुछ स्वार्थ नहीं है तो आप हरेक बात पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं? क्या आप को ये सब बातें किसी को याद रह सक्ती हैं? और शुभचिन्तकी के विचार सै हानि लाभ जतानें के लिये क्या एक इशारा काफ़ी नहीं है?" मुन्शी चुन्नीलाल नें मास्टर शिंभूदयाल की तरफ़दारी करके कहा.

"मैंनें अबतक लाला साहब सै जो स्वार्थ की बात की होगी वह लाला साहब और तुम लोग जान्ते होगे. जो इशारे मैं काम होसक्ता तो मुझको इतनें बढ़ा कर कहनें से क्या लाभ था? मैंने कही हैं वह सब बातें निस्सन्देह याद नहीं रह सक्तीं परन्तु मन लगा कर सुन्नें सै बहुधा उन्का मतलब याद रह सक्ता है और उस्समय याद न भी रहै तो समय पर याद आ जाता है. मनुष्य के जन्म सै लेकर वर्तमान समय तक जिस, जिस हालत मैं वह रहता है उस सबका असर बिना जाने उस्की तबियत मैं बना रहता है इस वास्ते मैंने ये बातें जुदे, जुदे अवसर पर यह