पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१६९

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संशय.
 

दौलत ख़र्च करके उन्को नाच दिखाओगे तो वह क्यों न तारीफ़ करेंगे? परन्तु यह तारीफ़ कितनी देरकी, वाह वाह कितनी देर की? कभी तुमपर आफ़त आ पड़ेगी तो इन्मैंसै कोई तुह्मारी सहायता को आवेगा? इस ख़र्चसै देशका कुछ भला हुआ? तुह्मारा कुछ भला हुआ? तुह्मारी संतान का कुछ भला हुआ? यदि इस फ़िजूल ख़र्चीके बदले लड़के के पढ़ानें लिखानें मैं यह रुपया लगाया जाता, अथवा किसी देश हितकारी काममैं ख़र्च होता तो निस्संदेह बड़ाई की बात थी परन्तु मैं इस्मैं क्या तारीफ़ करता, क्या प्रसन्न होता क्या सहायता करता मुझको तुह्मारी भोली, भोली बातोंपर बडा आश्चर्य था इसी वास्ते मैंने तुमको फ़िजूल ख़र्ची से रोका था, तुमको बावला बताया था परन्तु तुह्मारी तरफ़की मेरी मनकी प्रीतिमैं कुछ अंतर कभी नहीं आया, क्या तुम यह विचारते हो कि जिस्सै संबंध हो उस्की उचित अनुचित हरेक बातका पक्षपात करना चाहिये? इन्साफ़ अपनें वास्ते नहीं केवल औरोंके वास्ते है? क्या हाथ मैं डिम-डिमी लेकर सब जगह डोंडी पीटे बिना सच्ची प्रीति नहीं मालूम होती? इन सब बातोंमैं कोई बात तुह्मारी बडाईके लायक़ हो तो घर फूंक तमाशा देखना है. इसी तरह इन सब बातोंमें कोई बात मेरे प्रसन्न होनें लायक़ हो तो तुमको प्रसन्न देखकर प्रसन्न होना है मैं यह नहीं कहता कि मनुष्य ऐसे कुछ काम न करे समय, समय पर अपने बूते मूजिब सबकाम करनें योग्य हैं परंतु यह मामूली काररवाई है जितना वैभव अधिक होता है उतनी ही धूमधाम बढ़ जाती है इस लिये इस्में कोई ख़ास बात नहीं पाई जाती है. मैं चाहता हूं कि तुम सै कोई देश हितैषी ऐसा