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परीक्षागुरु.
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उस्सै मन मैं अन्तर तो पडही जाता है" हरकिशोर कहने लगा "स्यमन्तक मणि के सन्देह पर श्रीकृष्ण बलदेव जैसे भाईयों मैं भी मन चाल पड़ गई ब्रह्मसभा मैं अपमान होनें पर दक्ष और महादेव (ससुर जँवाई) के बीच भी विरोध हुए बिना न रहा."

"तो यों साफ़ क्यों नहीं कहते कि मेरी तरफ से अबतक तुम्हारे मन मैं वही विचार बन रहे हैं. मुझको कहना था वह कह चुका अब तुम्हारे मन मैं आवे जैसे समझते रहो" लाला ब्रजकिशोर नें बेपरवाई सै कहा.

"चालाक आदमियों की यह तो रीति ही होती है कि वह जैसी हवा देखते हैं वैसी बात करते हैं. अबतक मदनमोहन सै आप की अनबन रहती थी अब मुकदमों का समय आते ही मेल हो गया! अबतक आप मदनमोहन सै मेरी मित्रता छुड़ाने का उपाय करते थे अब मुझको मित्रता रखने के लिये समझाने लगे! सच है बुद्धिमान मनुष्य जो करना होता है वही करता है परन्तु औरों का ओलंभा मिटानें के लिये उन्के सिर मुफ़्‌त का छप्पर ज़रूर धर देता है. अच्छा! आप को लाला मदनमोहन की नई मित्रता के लिये बधाई है और आप के मनोर्थ सफल करनें का उपाय बहुत लोग कर रहे हैं" हरकिशोर नें भरमा भरमी कहा.

"यह तुम क्या बक्ते हो मेरा मनोर्थ क्या है? और मैंने हवा देखकर कौन्सी चाल बदली?" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे, "जैसे नाव मैं बैठने वाले को किनारे के वृक्ष चल्ते दिखाई देते हैं इसी तरह तुम्हारी चाल बदल जाने सै तुमको मेरी चाल मैं अन्तर मालूम पड़ता है. तुम्हारी तबियत को जाचनें के लिये तुमनें पहले सै कुछ नियम स्थिर कर रक्खे होते तो तुमको ऐसी भ्रान्ति कभी न