पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६९
प्रामाणिकता.
 


लाला ब्रजकिशोर को संसारी सुख भोगनें की तृष्णा नहीं है और द्रव्य की आवश्यकता यह केवल सांसारिक कार्य निर्वाह के लिये समझते हैं इस्वास्तै संसारी कामों की ज़रूरत के लायक़ परिश्रम और धर्म्म सै रुपया पैदा किये पीछे बाक़ी का समय यह विद्याभ्यास और देशोपकारी बातों मैं लगाते हैं.

इन्के निकट उन ग़रीबों की सहायता करनें मैं सच्चा पुन्य है जो सचमुच अपना निर्वाह आप नहीं कर सक्ते, या जिन रोगियों के पास इलाज करानें के लिये रुपया अथवा सेवा करनें के लिये कोइ आदमी नहीं होता. ये उन अन्‌समझ बच्चों को पढ़ाने लिखाने मैं, अथवा कारीगरी इत्यादि सिखा कर कमानें खानें के लायक बना देनें मैं, सच्चा धर्म समझते हैं जिन्के मा बाप दरिद्रता अथवा मूर्खता सै कुछ नहीं कर सक्ते. ये अपनें देश मैं उपयोगी विद्याओं की चर्चा फैलानें, अच्छी, अच्छी पुस्तकों का और भाषाओं से अनुवाद करवा कर अथवा नई वनवा कर अपनें देश मैं प्रचार करनें, और देश के सच्चे शुभचिन्तक और योग्य पुरुषों को उत्तेजन देनें, और कलों की अथवा खेती आदि की सच्ची देश हितकारी बातों के प्रचलित करने मैं सच्चा धर्म्म समझते हैं. परन्तु शर्त यह है कि इन सब बातों मैं अपना कुछ स्वार्थ न हो, अपनी नामवरी का लालच न हो, किसी पर उपकार करनें का बोझ न डाला जाय वल्कि किसी को ख़बर हीन होनें पाय.

इन्नें थोड़ी आमद मैं अपनें घरका प्रबन्ध बहुत अच्छा बांध रक्खा है इन्की आमदनी मामूली नहीं है तथापि जितनी आमदनी आती है उस्सै खंर्च कम किया जाता है और उसी ख़र्च मैं