सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७७
हाथसै पैदा करनें वाले
और पोतड़ों के अमीर.
 


मदनमोहन का पिता आप तो हरेक बात को बहुत अच्छी तरह समझता था परन्तु अपनें विचारों को दूसरे के मन मैं (उस्का स्वभाव पहिचान कर) बैठादेनें की सामर्थ्य उसे न थी उस्नें मदनमोहन को बचपन मैं हिन्दी, फारसी, और अंग्रेजी भाषा सिखानें के लिये अच्छे, अच्छे उस्ताद नौकर रख दिये थे परन्तु वह क्या जान्ता था कि भाषा ज्ञान विद्या नहीं; विद्या का दरवाजा है विद्या का लाभ तो साधारण रीति सैबुद्धि के तीक्ष्ण होनें पर और मुख्य कर के विचारों के सुधरनें पर मिलता है. जब उस्को यह भेदप्रगट हुआ उस्नें मदनमोहन को धमका कर राह पर लानें की युक्ति विचारी परन्तु वह नहीं जान्ता था कि आदमी धमकानें सै आंख और मुख बन्द कर सक्ता है, हाथ जोड़ सकता है, पैरों में पड़ सक्ता है, कहो जैसे कह सक्ता है, परन्तु चित्त पर असर हुए बिना चित्त नहीं बदलता और सत्संग बिना चित्त पर असर नहीं होता जब तक अपने चित्त मैं अपनी हालत सुधारने की अभिलाषा न हो औरों के उपदेश सै क्या लाभ हो सक्ता है? मदनमोहन का पिता मदनमोहन को धमका कर उस्के चित्त का असर देखनें के लिये कुछ दिन चुप हो जाता था परन्तु मदनमोहन के मन दुखनें के विचार सै आप प्रबन्ध न करता था और इस देरदार का असर उल्टा होता था. हरकिशोर, शिंभूदयाल, चुन्नीलाल, वगैरे मदनमोहन की बाल्यावस्था को इसी झमेल मैं निकाला चाहते थे क्योंकि एक तो इस अवकाश मैं उन लोगों के संग का असर मदनमोहन के चित्त पर दृढ़ होता जाता था दूसरे मदनमोहन की अवस्था के संग उस्की स्वतन्त्रता बढ़ती जाती थी इसलिये मदनमोहन के सुधरनें का