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परीक्षागुरु.
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यह रस्ता न था. मदनमोहन के विचार प्रति दिन दृढ़ होते जाते थे परन्तु वह अपने पिता के भय से उन्हें प्रगट न करता था. खुलासा यह है कि मदनमोहन के पिता ने अपनी प्रीति अथवा मदनमोहन की प्रसन्नता के विचार सै मदनमोहन के बचपन मैं अपनें रक्षक भाव पर अच्छी तरह बरताव नहीं किया अथवा यों कहो कि अपना कुदरती हक़ छोड़ दिया इसलिये इन्के स्वभाव मैं अन्तर पड़ने का मुख्य ये ही कारण हुआ.

ब्रजकिशोर ठेठ सै मदनमोहन के विरुद्ध समझा जाता था. ब्रजकिशोर को वह लोग कपटी, चुग़ल, द्वेषी और अभिमानी बताते थे उन्के निकट मदनमोहन के पिता का मन बिगाड़नें वाला वह था. चुन्नीलाल और शिंभूदयाल उस्की सावधानी सै डर कर मदनमोहन का मन उस्की तरफ़ से बिगाड़ते रहते थे और मदनमोहन भी उस्पर पिता की कृपा देखकर भीतर सै जल्ता था हरकिशोर जैसे मुंह फट तो कुछ, कुछ भरमा भरमी उस्को सुना भी दिया करते थे परन्तु वह उचित जवाब देकर चुप हो जाता था और अपनी निर्दोष चाल के भरोसे निश्चिन्त रहता था हां उस्को इन्की. चाल अच्छी नहीं लगती थी और इन्के मन का पाप भी मालूम था इसलिये वह इन्सै अलग रहता था इन्का वृत्तान्त जान्नें सै जान बूझ कर बेपरवाई करता था उस्ने मदनमोहन के पिता सै इस बिषय मैं बात चीत करना बिल्कुल बन्द कर दिया था मदनमोहन के पिता का परलोक हुए पीछे निस्सन्देह उस्को मदनमोहन के सुधारनें की चटपटी लगी उस्नें मदनमोहन को राह पर लानें के लिये समझानें मैं कोई बात