पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१९३

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साहसी पुरुष.
 


"लाला हरकिशोर किस्पर नालिश की तैयारी कर रहे हैं?" मुन्शी नें पूछा.

"कुछ नहीं साहब! मैं आप से कुछ नहीं कहता. मैं तो बिचारे मदनमोहन का विचार कर रहा हूं हा! उस्की सब दौलत थोड़े दिन मैं लुट गई अब उस्के काम मैं हल चल हो रही है लोग नालिश करनें को तैयार हैं मैंने भी कम्बख्ती के मारे हज़ार दो एक का कपड़ा दे दिया था इसलिये मैं भी अपनें रुपे पटाने की राह सोच रहा हूं. बिचारा मदनमोहन कैसा सीधा आदमी था?"

"क्या सचमुच उस्पर तक़ाज़ा हो गया? उस्पर तो हमारे साहब के भी पचास हज़ार रुपे लेनें हैं आज सवेरे तो लाला मदनमोहन की तरफ़ सै बड़े काचों सी एक जोड़ी ख़रीदनें के लिये मास्टर शिंभूदयाल हमारे साहब के पास गए थे फिर इतनी देर मैं क्या होगया? तुमनें यह बात किस्सै सुनी?".

"मैं आप वहां से आता हूं कल सै गड़बड़ हो रही है कल एक साहब दस हज़ार रुपे मांगनें आए थे इस्पर मदनमोहन नें स्पष्ट कह दिया कि मेरे पास कुछ नहीं है मैं कहीं सै उधार लेकर दो एक दिन मैं आप का बंदोबस्त कर दूंगा. मैंनें अपनें रुपे के लिये बहुत ताकीद की पर मुझको भी कोरा जवाब ही मिला अब मैं नालिश करनें जाता हूं और निहालचन्द मोदी अभी पांच हज़ार के लिये पेट पकड़े गया है वह कहता था कि मेरे रुपे इस्समय न दैंगे तो मैं भी अभी नालिश कर दूंगा जिस्की नालिश पहलै होगी उस्को पूरे रुपे मिलैंगे."

"तो मैं भी जाकर साहब सै यह हाल कह दूं तुम्हारी रक़म