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परीक्षागुरु.
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कर पूछा "कम से कम लाख, पचास हज़ार का तो शीशा बर्तन इस्समय इन्के मकान में होगा"

"समय पर शीशे बर्तन को कोई नहीं पूछता उस्की लागत मैं रुपे के दो आनें नहीं उठते इन्हीं चीजों की ख़रीदारी मैं तो सब दौलत जाती रही मैंने निश्चय सुना है कि इन चीजों की क़ीमत बाबत पचास हज़ार रुपे तो ब्राइट साहबके देनें हैं और कल एक अंग्रेज दस हज़ार रुपे मागनें आया था न जानें उस्के लेनें थे कि क़र्ज़ मांगता था परन्तु लाला साहब नें किसी सै उधार मंगा कर देनें का क़रार किया है ? फिर जहां उधार के भरोसे सब काम भुगतनें लगा वहां बाकी क्या रहा? मैंनें अपनी रक़म के लिये अभी बहुत तक़ाज़ा किया पर वे फूटी कौड़ी नहीं देते इसलिये मैं तो अपनें रुपों की नालिश अभी दायर करता हूं तुह्मारी तुम जानों."

यह बात सुन्ते ही मोदी के होश उड़ गए वह बोला "मेरे भी पांच हज़ार लेनें हैं मैंनें कई बार तगादा किया पर कुछ सुनाई न हुई मैं अभी जाकर अपनी रक़म मांगता हूं जो सूधी तरह देदैंगे तो ठीक है नहीं तो मैं भी नालिश कर दूंगा. ब्योहार मैं मुलाहिज़ा क्या?

इस्तरह बतला कर दोनों अपनें, अपनें रस्ते लगे. आगै चल कर हरकिशोर को मिस्टर ब्राइट का मुन्शी मिला वह अपनें घर भोजन करनें जाता था उसै देख कर हरकिशोर अपनें आप कहने लगा "मुझे क्या है? मेरे तो थोड़ेसे रुपे हैं मैं तो अभी नालिश करके पटा लूंगा. मुश्किल तो पचास, पचास हज़ार वालों की है देखैं वह क्या करते हैं?"