पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१९५

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साहसी पुरुष.
 

खागए परंतु उन्के काम बिगडनें की बात मेरे मन मैं अबतक नहीं बैठती तुमनें यह हाल किस्सै सुना है?"

"मैं आप वहां से आया हूं मुझको झूंट बोलने से क्या फायदा है? मैं तो अभी जाकर नालिश करता हूं निहालचन्द मोदी नालिश करनें को तैयार है ब्राइट साहव का मुन्शी अभी सब हक़ीक़त निश्चय करके साहब के पास दौड़ा गया है तुमको भरोसा न हो निस्संदेह न मानो तुम न मानोगे इस्सै मेरी क्या हानि होगी" यह कहकर हरकिशोर वहां से चल दिया."

पर अब मदनमोहन की तरफ़ सै आग़ाहसनजान को धैर्य न रहा. असल रुपे का लालच उस्को पीछै हटाता था और नफेका लालच आगे बढाता था पहले रुपे के विचार सै तबियत और भी घबराई जाती थी निदान यह राह ठैरी कि इस्समय घोड़ों को फेर ले चलो मदनमोहन का काम बना रहैगा तो पहले रुपे वसूल हुए पीछे ये घोड़े पहुंचा दैंगे नहीं तो कुछ काम नहीं."

इधर हरकिशोरको मार्गमैं जो मिलता था उस्सै वह मदनमोहन के दिवाले का हाल बराबर कहता चला जाता था और यह सब बातैं बाज़ार मैं होती थीं इसलिये एक सैं कहने मैं पांच और सुन लेते थे और उन पांच के मुख सै पचासों को यह हाल तत्काल मालूम हो जाता था फिर पचास सै पांच सौ मैं और पांच सौ सै पांच हज़ार मैं फैलते क्या देर लगती थी? और अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि हरेक आदमी अपनी तरफ सै भी कुछ, न कुछ नोंन मिर्च लगाही देता था जिस्को एक के कहनें सै भरोसा न आया दो के कहनें सै आगया, दो के कहनेंसै