"राम, राम! यह हज़ूर क्या फरमाते हैं? आप की अप्रसन्नता का विचार कैसे हो सक्ता है? आप तो हमारे प्रतिपालक है. मैं जाकर अभी चुन्नीलाल को भेजता हूं वह आकर अपना अपराध क्षमा करायगा और चला गया होगा तो शामको हाजिर होगा" हीरालालने उठते उठते कहा.
"अच्छा! तुम कितनी देर मैं आओगे?"
"मैं अभी भोजन करके हाजिर होता हूं" यह कह कर हीरालाल रुखसत हुआ.
लाला ब्रजकिशोर अपनें मनमैं बिचारनें लगे कि "अब चुन्नीलाल सै सहज मैं मेल हो जायगा परन्तु यह तक़ाज़ा कैसे हुआ? कल हरकिशोर क्रोधमैं भर रहा था इस्सै शायद उसीनें यह अफ़वा फैलाई हो उस्नें ऐसा किया तो उस्के क्रोधनें बड़ा अनुचित मार्ग लिया और लोगोंनें उस्के कहने में आकर बडा धोका खाया.
"अफ़वा वह भयंकर बस्तु है जिस्सै बहुत से निर्दोष दूषित बन जाते हैं. बहुत लोगोंके जोमैं रंज पड जाते हैं बहुत लोगों के घर बिगड जाते हैं. हिन्दुस्थानियोंमैं अबतक बिद्याका ब्यसन नहीं है समय की क़दर नहीं है भले बुरे कामों की पूरी पहचान नहीं है इसी सै यहांके निवासी अपना बहुत समय औरों के निज की बातों पर हाशिया लगानें मैं और इधर उधरकी ज़टल्ल हांकनें मैं खो देतेहैं जिस्से तरह, तरह की अफ़वाएं पैदा होती हैं और भलेमानसोंकी झूंटी निंदा अफ़वाकी ज़हरी पवन मैं मिल्कर उन्के सुयशको धूंधला करती है इन अफवा फैलानें वालोंमैं कोई, कोई दुर्जन खानें कमानें वाले हैं कोई कोई दुष्ट बैर और जलन सै