पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०१
लोक चर्चा (अफ़वाह).
 

नाम, पता और उन पूछना भी विटाई समझा जाता है अपनें निज के सम्बन्धियों की निज की बातों सै भी अजान रहना वह लोग बहुधा पसंद करते हैं रेल मैं, जहाज़ मैं खानें पीनें के जलसों मैं, पास बैठनें मैं और बात चीत करने मैं जान पहचान नहीं समझी जाती. वह लोग किराए के मकान मैं बहुत दिन पास रहनें पर बल्कि दुःख दर्द मैं साधारण रीति सै सहायता करनें पर भी दूसरे की निज बातों सै अजान रहते हैं. जबतक जान पहचान स्थिर रखनें के लिये दूसरे की तरफ़ से सवाल न हो, अथवा किसी तीसरे मनुष्य नें जान पहचान न कराई हो, नित्य की मिला भेटी और साधारण रीति सै बात चीत होनें पर भी जान पहचान नहीं समझी जाती और जान पहचान हुए पीछै भी मित्रता होनें मैं बडी देर लगती है क्योंकि वह लोग स्वभाव पहचानें बिना मित्रता नहीं करते पर मित्रता हुए पीछै भी दूसरे की निज की बातों सै अजान रहना अधिक पसन्द करते हैं. उन्के यहां निज की बातों के पूछनें की रीति नहीं है उन्को देश सम्बन्धी बातैं करनें का इतना अभ्यास होता है कि निज के वृतान्त पूछनें का अवकाश ही नहीं मिल्ता परंतु निज की बातों सै अजान रहनें के कारण उन्की प्रीति मैं कुछ अन्तर नहीं आता. मनुष्य का दुराचार साबित होनें पर वह उसै तत्काल छोड देते हैं परंतु केवल अफ़वा पर वह कुछ ख्याल नहीं करते बल्कि उस्का अपराध साबित न हो जबतक वह उस्को अपना बचाव करनें के लिये पूरा अवकाश देते हैं और उचित रीति सै उस्का पक्ष करते हैं."