पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२१९

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फूटका काला मुंह.
 


"इस्की चिन्ता नहीं, ऐसे काम के लिये लोग यह समय बहुत अच्छा समझते हैं"

"बहुत अच्छा? अब मैं जाता हूं परन्तु—" मुन्शी चुन्नीलाल कहते, कहते रुक गया.

"परन्तु क्या? स्पष्ट कहो, मैं जान्ता हूं कि तुम्हारे मन का संदेह अब तक नहीं गया. तुम्हारी हज़ार बार राज़ी हो तो तुम सफ़ाई करो नहीं तो न करो अभी कुछ नहीं बिगड़ा मेरा कौन्सा काम अटक रहा है? तुम अपना नफा नुक्सान आप समझ सक्ते हो"

"आप अप्रसन्न न हों, मुझको आपपर पूरा भरोसा है मैं इस कठिन समय मैं केवल आप पर अपनें निस्तार का आधार समझता हूँ मेरी लायकी, नालायकी मेरे कामों सै आप को मालूम हो जायगी परंतु मेरी इतनीही बिनती है कि आप भी जरा नरम ही रहैं इन्को बातों मैं बढ़ावा देकर इन्सै सब तरह का काम ले सक्ते हैं परतु इन पर एतराज़ करनें सै यह चिड़ जाते हैं. कल के झगड़े के कारण आजके तक़ाज़े का सन्देह इन्को आप पर हुआ है परन्तु अब मैं जाते ही मिटा दूंगा" मुंशी चुन्नीलाल ने बात पलटकर कहा और उठकर जानें लगा.

"तुम किया चाहोगे तो सफ़ाई होनी कौन कठिन है? (वृन्द) प्रेरक ही ते होत है कारज सिद्ध निदान॥ चढ़े धनुष हू ना चले बिना चलाए बान॥ १ सुजन बीच पर दुहुनको हरत कलह रस पूर॥ करत देहरी दीप जों घर आंगन तम दूर॥ २" यह कहकर लाला ब्रजकिशोर ने चुन्नीलाल को रुखसत किया.

चुन्नीलाल के चित्त पर ब्रजकिशोर की कहन और हीरालाल