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परीक्षागुरु.
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"तो मैं अपनी ज़ामिनी देकर जायदाद नीलाम न होने दूंगा" ब्रजकिशोर नें जवाब दिया. और अब शिंभूदयाल को बोलनें की कोई जगह न रही.

"कल कई मुकद्दमों की तारीखैं लगरही हैं और अबतक मैं उन्के हाल सै कुछ भेदी नहीं हूँ तुमको अवकाश हो तो लाला साहब सै आज्ञा लेकर थोडी देरके लिये मेरे साथ चलो" लाला ब्रजकिशोर ने मुन्शी चुन्नीलाल सै कहा.

"हां, हां, तुम साथ जाकर सब बातें अच्छी तरह समझा आओ" लाला मदनमोहन नें मुन्शी चुन्नीलाल को हुक्म दिया.

"आप इस्समय किसी काम के लिये किसीको अपना गहना न दें ऐसे अवसरपर ऐसी बातों मैं तरह, तरहका डर रहता है" लाला ब्रजकिशोर नें जाती बार मदनमोहन सै संकेत मैं कहा और मुन्शी चुन्नीलाल को साथ लेकर रुखसत हुए.

आज लाला मदनमोहन की सभा मैं वह शोभा न थी केवल चुन्नीलाल शिंभूदयाल आदि दो चार आदमी दृष्टि आते थे परन्तु उन्के मनभी बुझे हुए थे. हँसी चुहल की बातें किसी के मुखसै नहीं सुनाई देती थीं खास्कर ब्रजकिशोर और चुन्नीलाल के गए पीछे तो और भी सुस्ती छागई मकान सुन्सान मालूम होनें लगा. शिंभूदयाल ऊपर के मन सै हँसी चुहल की कुछ, कुछ बातें बनाता था परन्तु उन्मैं मोमके फूलकी तरह कुछ रस न था. निदान थोड़ी देर इधर उधर की बातें बनाकर सब अपनें, अपनें रस्ते लगे और लाला मदनमोहन भी मुर्झाए चित्तसै पलंगपर जा लेटे.