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परीक्षागुरु.
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बाबत सरकार सै मिलनेवाले हैं और रहनेंका मकान, बाग, सवारी, सर सामान वगैरे सब इन्सै अलग है" मुन्शी चुन्नीलालनें जवाब दिया.

"इस तरह अटकल पच्चू हिसाब बतानें से कुछ काम नहीं चल्ता जबतक लेनें देनें का ठीक हाल मालूम नहीं फैस्ला किस तरह किया जाय? तुम सबेरे लाला जवाहरलाल को मेरे पास भेज देना मैं उस्सै सब हाल पूछ लूंगा. ऐसे अवसरपर असावधानी रखने सै देना सिरपर बना रहता है और लेना मिट्टी हो जाता है." ब्रजकिशोरनें कहा.

"कागज बहुत दिनोंका चढ रहा है और बहुत से जमा खर्च होनें बाकी हैं इस लिये कागज़ से कुछ नहीं मालूम हो सक्ता" मुन्शी चुन्नीलालनें बात उड़ानें की तजबीज की.

"कुछ हर्ज नहीं, मैं लोगों सै जिरहके सवाल करके अपना मतलब निकाल लूंगा मुझको अदालत मैं हर तरहके मनुष्यों सै नित्य काम पड़ता है" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "तुमनें आज सबेरे मुझ सै सफ़ाई करनें की बात की थी परंतु अभी सै उस्मैं अंतर आने लगा मैं वहां पहुंचा उस्समय तुम लोग लाला साहब सै गहना लेनें की तजबीज कर रहे थे परंतु मेरे पहुंचते ही वह बात उड़ानें लगे मुझको कुछ का कुछ समझानें लगे सो मैं ऐसा अन्‌समझ नहीं हूं यदि मेरा रहना तुमको असह्य है, मेरे मेलसै तुम्हारी कमाई मैं फ़र्क आता है, मेरे मेल करानेंका तुमको पछतावा होता है तो मैं तुम्हारी मारफत मेल कर कै तुम्हारा नुक्सान हरगिज़ नहीं किया चाहता, लाला साहब सै मेल नहीं रक्खा चाहता तुम अपना बंदोबस्त आप कर लेना."