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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२५५

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मित्रपरीक्षा.
 


रस्ते मैं एक और मित्र मिले वह दूर ही सै अजानकी तरह दृष्टि बचाकर गलीमैं जानें लगे परन्तु लाला मदनमोहननें आवाज़ देकर उन्हें ठैराया और अपनी बग्गी खडी की इस्सै लाचार होकर उन्हें ठैरना पडा परन्तु उनके मनमैं पहली सी उमंग नाम को न थी.

"आप प्रसन्न हैं? मुझको इस्समय एक बड़ा ज़रूरी काम था इस्सै मैं लपका चला जाता था मुझको आपकी बग्गी दृष्टि न आई, माफ करें मैं किसी समय आपके पास हाज़िर होऊंगा" यह कहकर वह मनुष्य जानें लगा परन्तु मदनमोहननें उसै फिर रोका और कहा "हां भाई? अब तुमको अपनें जरूरी कामोंके आगे मुझसैं मिलने का अवकाश क्यों मिलनें लगा था? अच्छा? जाओ हमारा भी परमेश्वर रक्षक है"

इस तानें सै लाचार होकर उसै ठैरना पड़ा और उसके ठैरनें पर लाला मदनमोहन ने अपना वृत्तान्त कहा.

"यह हाल सुन्कर मुझको अत्यन्त खेद हुआ परमेश्वर आप पर कृपा करे वह सर्वशक्तिमान दीनदयाल सर्व का दुःख दूर करता है उस्पर विश्वास रखनें सै आप के सब दुःख दूर हो जायंगे आप धैर्य रक्खें. मुझको इस्समय सचमुच बहुत ज़रूरी काम है इस लिये मैं अधिक नहीं ठैर सक्ता परन्तु मैं आजकल मैं आपके पास हाजिर होऊंगा और सलाह करके जो बात मुनासिब मालूम होगी उस्के अनुसार बरताव किया जायगा" यह कह कर वह मनुष्य तत्काल वहां सै चल दिया.

लाला मदनमोहन और एक मित्रके मकानपर पहुंचे. बाहर खबर मिली कि "वह मकान के भीतर हैं" भीतर सै जवाब आया