ले जाकर उन्हैं तकियेके सहारे बिठाया. लाला मदनमोहनको थोडी देर उस्की बाट देखनी पड़ी थी इस्की क्षमा चाही और इधर उधरकी दो चार बातें करके मानों कुछ चिट्ठियां अत्यन्त आवश्यकीय लिखनी बाकी़ रह गई हों इस्तरह चिट्ठी लिखनें लगा परंतु दो चार पल पीछे फिर कलम रोककर बोला “हां यह तो कहिये आपनें इस्समय किस्तरह परिश्रम किया?”
“क्यों भाई! आनें जानें का कुछ डर है? क्या मैं पहले कभी तुम्हारे यहां नहीं आया? या तुम मेरे यहां नहीं गए?” लाला मदनमोहननें कहा.
“आपने यह तो बड़ी कृपा की परन्तु मेरे पूछनें का मतलब यह था कि कुछ ताबेदारी बताकर मुझे अधिक अनुग्रहीत कीजिये” उस मनुष्यनें अजानपों मैं कहा.
“हां कुछ काम भी है मुझको इस्समय रुपे की कुछ ज़रूरत है मेरे पास बहुत कुछ माल अस्वाब मौजूद है परन्तु लोगोंनें बृथा तकाजा करके मुझको घबरा लिया” लाला मदनमोहन भोले भाव सै बोले.
“मुझको बड़ा खेद है कि मैंने अपना रुपया अभी एक और काम मैं लगा दिया यदि मुझको पहलै सै कुछ सूचना होती तो मैं सर्वथा वह काम न करता” उस मनुष्यनें जबाब दिया.
“अच्छा! कुछ चिन्ता नहीं आप मेरे लेनदारोंकी जमाख़ातर ज़रा अपनी तरफ़ सै कर दें“
“इस्सै हमारी स्वरूपहानि है हम जामनी करें तो हमको रुपया उसी समय देना चाहिये” उस पुरुषनें जवाब दिया और लाला मदनमोहन वहां सै भी निराश होकर रवाने हुए.