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परीक्षागुरु.
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लाला मदनमोहनने आंखों सें आंसू बहाकर उन्सै अपना सब दु:ख कहा और अंत में अपनी घडी जानें का हाल कह कर इस काम मैं सहायता चाही.

“आपका हाल सुन्कर मुझको बहुत खेद होता है मुझे चुन्नीलाल आदि की तरफ सै सर्वथा ऐसा भरोसा न था इसी तरह आप अपनें काम कांज सै इतनें वे खबर होंगे यह भी उम्मेद न थी” बाबू बैजनाथ नें काम बिगड़े पीछे अपनी आदत मूजिब सबकी भूल निकालकर कहा "मैंनें तो अख़बारों मैं आपके नाम की धूम मचा दी थी परंतु आप अपनें काम ही की सम्हाल न रक्खें तो मैं क्या करूंं? महाजनी काम मुझको नहीं आता और इतना अवकाश भी नहीं मिलता. मैं घडीका पता लगानें के लिए उपाय करता परंतु आजकल रेल पर काम बहुत है इस्सै मैं लाचार हूं. मेरे निकट इस्समय आपके लिये यही मुनासिब है कि आप इन्साल्वन्ट होंनें की दरखास्त दे दै."

"अच्छा! बाबू साहब! आपसैं और कुछ नहीं हो सक्ता तो आप केवल इतनीही कृपा करें कि मेरी घडी जानें कि रपट कोतवाली मैं लिखाते जायँ" लाला मदनमोहननें, गिड़गिड़ाकर कहां

“मैं रेलवे कम्पनी का नौकर हुंं इस वास्ते कोतवाली मैं रिपोर्ट नहीं लिखा सक्ता बलिक प्रगट होकर किसी काम मैं आप को कुछ सहायता नहीं दे सक्ता मुझ सै निज मैं आपकी कुछ सहायता हो सकेगी तो मैं बाहर नहीं हूं परंतु आप मुझ सै किसी जाहरी काम के वास्तै कहकर मुझसे अधिक लज्जित न करें और अंत मैं मैं आपको इतनी ही सलाह देता हूं कि "आप