पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२६५

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स्तुति निन्दाका भेद.
 


लाला ब्रजकिशोर पर विश्वास रखकर उस्के बसमें न हो जायँ बल्कि उसको अपनें बस मैं रखकर अपना काम आप करते रहैं”

"सच है यह समय किसी पर विश्वास रखनें का नहीं है। जो लोग अपने मतलब की बार सच्चे मित्र बनकर मेरे पसीनेंकी जगह खून डालनें को तैयार रहते थे मतलब निकल जाने सै आज उन्की छाया भी नहीं दिखाई देती. सत्सम्मति देना तो अलग रहा मेरे पास खड़े रहनें तक के साथी नहीं होते. जो लोग किसी समय मेरी मुलाक़ात के लिये तरस्ते थे वह अब तीन; तीन बार बुलाने से नहीं आते मेरे पास आनें जानें सै जिन् लोगों की इज्जत बढ़ती थी वह आज मुझ सै किसी तरह संबंध रखनें मैं लजाते हैं” लाला मदनमोहननें भरमा भरमी इतनी बात कहकर अपनी छाती का बोझ हल्का किया.

“यह तो सच है जिसका प्रयोजन होता है उसै उचित अनुचित बातोंका कुछ बिचार नहीं रहता” बाबू बैजनाथनें जैसे का तैसा जवाब दिया और थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके रुखसत हुआ.

लाला मदनमोहन बड़े चकित थे कि हे! परमेश्वर! यह क्या भेद है मेरी दशा बदलते ही सब संसार के विचार कैसे बदल गए. और जिन्नै मेरा किसी तरह का संबंध न था वह भी मुझ को अकारण क्यों तुच्छ समझनें लगे? मेरे नर्म होनें पर भी बेप्रयोजन मुझ सैं क्यों लड़ाई झगड़ा करनें लगे? जिन लोगों को मेरी योग्यता और सावधानी के सिवाय अब तक कुछ नहीं दिखाई देता था उन्को अब क्यों मेरे दोष दृष्टि आनें लगे? लाला मदनमोहन इन बातों का विचार कर रहे थे इतनें मैं लाला