पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२६७

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स्तुति निन्दाका भेद.
 


दोषारोप करनें लगते हैं! उस्समय उन्को उस्की भूलही भूल दृष्टि आती है सो आप प्रत्यक्ष देख लीजिये कि जब तक सर्व साधारणको प्रगट मैं आपकी उन्नतिका रूप दिखाई देता था. आपका द्रव्य, आपका वैभव, आपका यश, आपकी उदारता, आपका सीधापन, आपकी मिलन्सारी, देखकर वह आपका आचरण अच्छा समझते थे आपकी बुद्धिमानीकी प्रशंसा करते थे आपसै प्रीति रखते थे. जब आपको यह झटका लगा प्रगट मैं आपकी अवनति का सामान दिखाई देनें लगा झट उन्की राह बदल गई आपके बडप्पन के बदले उन्के मन मैं धिक्कार उत्पन्न हुआ आप की अतिब्ययशीलता, अदूरदुष्टि, अप्रबन्ध और आत्मसुखपरायणता आदि दोष उन्को दिखाई देने लगे. आपके बने रहनें पर उन लोगोंको आप सै जो, जो आशाएँ थीं और उन आशाओं के कारण आपसै स्वार्थपरता की जितनी प्रीति थी वह उन आशाओं के नष्ट होते ही सहसा छाया के समान उन्के हृदयसै जाती रही बल्कि आशा भंग होनें का एक प्रकार खेद हुआ फिर जब साधारण लोगों का यह अभिप्राय हो, मुन्शी चुन्नीलाल, शिंभूदयाल आदि आपको यों अकेला छोडकर चले जायं तब आपके छोटे नौकर निडर होकर आपके मालकी लूट मचानें लगें जो चीज जिस्के पास हो वह उस्का मालिक बन बैठे इस्मैं कौन आश्चर्य है?

"अच्छा! अब आगे के लिये आप कहैं जैसे करूंं इस्का कुछ प्रबन्ध तो अवश्य होना चाहिये" लाला मदनमोहन नें गिडगिडा कर कहा.

इस्पर लाला ब्रजकिशोर घर के सब नौकरों को धमका कर