और बाजार में बारह-बारह रुपये को बिकी हैं पर यहां तो तेरह-तेरह में आई होंगी” हरकिशोर ने जवाब दिया.
“तुम हमें पंद्रह-पंद्रह रुपये में ला दो" हरगोविन्द ने झुंझला कर कहा.
“मैं अभी लाता हूं. तुम्हारे मन में आवे जितनी ले लेना”
"ला चुके, ला चुके लाने की यही सूरत है?” हरगोविन्द ने
बात उड़ाने के वास्ते कहा.
“क्यों? मेरी सूरत को क्या हुआ? मैं अभी टोपियांँ लाकर
तुम्हारे सामने रख देता हूँ” हरकिशोर ने हिम्मत से जवाब
दिया.
"तुम टोपियाँ क्या लाओगे? तुम्हारी सूरत पर तो खिसियानपन अभी से छा गया!" हरगोविन्द ने मुस्करा कर कहा.
“मुझको नहीं मालूम था कि मेरी सूरत में दर्पण की खासियत है” हरकिशोर ने हंस कर जवाब दिया.
"चलो चुप रहो क्यों थोथी बातें बनाते हो?” मुन्शी चुन्नीलाल ने रोकने के वास्ते भरम में बोले.
“बहुत अच्छा! अब मैं टोपी लाये पीछे ही बात करूँगा।" यह कह कर हरकिशोर वहां से चल दिये.
“यहां के दुकानदारों में यह बड़ा ऐब है कि जलन के मारे
दूसरे के माल को बारह आने का जाँच देते हैं” मुन्शी चुन्नीलालन ने कहा.
"और किसी समय मुक़ाबला आ पड़े तो अपनी गिरह से
घाटा भी दे बैठते हैं” मास्टर शिंभूदयाल बोले.