पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२९

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संगति का फल
 

"न जाने लोगों को अपनी नाक कटा कर औरों की बदशगूनी करने मैं क्या मज़ा आता है" हकीमजी ने कहा.

"और जो हरगोविन्द कुछ ठगा आया होगा तो क्या मैं इन्के पीछे उस्का मन बिगाडूंगा?" लाला मदनमोहन बोले.

"आपकी ये ही बातैं तो लोगों को बेदाम गुलाम बना लेती हैं" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

"कुछ दिन सै यहां ग्वालियर के दो गवैये निहायत अच्छे आए हैं मरज़ी हो दो घड़ी के वास्तै आज की मजलिस मैं उन्हें बुला लिया जाय?" हरकिसन दलाल ने पूछा.

"अच्छा! बुलालो तुम्हारी पसंद है तो ज़रूर अच्छे होंगे" मदनमोहन ने कहा.

"लखनऊ की अमीरजान भी इन दिनों यहीं है इस्के गाने की बड़ी तारीफ़ सुनी गई है पर मैंने अपने कान सै अब तक उस्का गाना नहीं सुना" हकीमजी बोले.

"अच्छा! आप के सुन्ने को हम उसे भी यहां बुलाये लेते हैं पर उस्के गाने ने समा न बांधा तो उस्के बदले आप को गाना पड़ेगा!" लाला मदनमोहन ने हंस कर कहा.

"सच तो ये है कि आप के सबब सै दिल्ली की बात बन रही है जो गुणी यहां आता है कुछ न कुछ ज़रूर ले जाता है आप न होते तो उन बिचारों को यहां कौन पूछता? आपकी इस उदारता सै आपका नाम विक्रम और हातम की तरह दूर, दूर तक फैल गया है औ बहुत लोग आप के दर्शनों की अभिलाषा रखते हैं" मुन्शी चुन्नीलाल ने छींटा दिया.