पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२९०

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परीक्षागुरु.
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तुम्हारे कहनें पर पूरा विश्वास है परन्तु मैं एकबार अपनी आंंख स भी उन्हैं देख सकती हूं?" मदनमोहन की स्त्री नें रोकर कहा.

"इस्समय तो कचहरी में हजारों आदमियोंकी भीड़ हो रही है सन्ध्या को मौक़ा होगा तो देखा जायगा” ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

"तो क्या सन्ध्या तक भी वह— "मदनमोहन की स्त्री के मुख से पूरा बचन न निकल सका कंठ रुक गया और उस्को रोते देख कर उस्के बच्चे भी रोनें लगे.

निदान बड़ी कठिनाई सै समझा कर ब्रजकिशोरनें मदनमोहन की स्त्री को घर भेजा परन्तु वह जाती बार जबरदस्ती अपना सब गहना ब्रजकिशोर को देती गई और उस्के बच्चे भी ब्रजकिशोर को छोड़कर घर न गए जब ब्रजकिशोरके साथ कचहरी मैं जाते थे तब उन्की दृष्टि एकाएक मदनमोहन पर जा पड़ी और वह उस्को वहां देखते ही उस्मै जाकर लिपट गए.

“क्यों जी! यह कहां से आए?" मदनमोहननें आश्चर्यसै पूछा.

“इन्की माके साथ ये अभी मेरठसै आए हैं वह बिचारी आप का यह हाल सुन्कर यहां दौड आई थी सो मैंने उसे बडी मुशकिलझे समझा बुझाकर घर भेजा है” ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

"लाला जी घर क्यों नहीं चल्ते? यहां क्यों बैंठे हो?” एक लडकेनें गले से लिपट कर कहा.

“मैं तो तुम्हारे छंग (संग) आज हवा खाने चलूंगा और