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परीक्षा गुरु
२२
 

इतने में हरकिशोर टोपी ले कर आ पहुँचे और बारह-बारह रुपये में खुशी से देने लगे.


"सच कहो तुमने इसमें अपनी गिरह का पलोथन क्या लगाया है?” शिंभूदयाल ने पूछा.


“पलोथन लगाने की क्या जरूरत थी मैं तो इसमें लाला साहब से कुछ इनाम लिया चाहता हूँ" हरकिशोर ने जवाब दिया.


"मुझको टोपियाँ लेनी होती तो मैं किसी न किसी तरह से आप ही तुम्हारा घाटा निकालता पर मैं तो अपनी जरूरत के लायक पहले ले चुका" लाला मदनमोहन ने रुखाई से कहा.


आप को इनकी कीमत में कुछ संदेह हो तो मैं असल मालिक को रूबरू कर सकता हूं?"


"जिस गांव नहीं जाना उसका रास्ता पूछना क्या जरूरत" “तो मैं इन्हें ले जाऊँ?"


“मैंने मंगाई कब थी जो मुझसे पूछते हो" यह कह कर लाला मदनमोहन ने कुछ ऐसी त्योरी बदली कि हरकिशोर का दिल खट्टा हो गया और लोग तरह-तरह की नकलें करके उसका ठट्ठा उड़ाने लगे.


हरकिशोर उस समय वहां से उठ कर सीधा अपने घर चला गया पर उसके मन में इन बातों का बड़ा खेद रहा.