पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३०३

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सुधरने की रीति.
 

"यदि यह बात आपनें आपनें मन सै कही है तो मेरे लिये भी आप वैसाही धोका खाते हैं जैसा औरोंके लिये खाते थे। मैं पहले कहचुका हूं कि मनुष्य का स्वभाव उसकी बातों सै नहीं मालूम होता उस्के कामों सै मालूम होता है फिर आपनें मुझको किस्तरह सच्चा मित्र समझ लिया?” लाला ब्रजकिशोर पूछनें लगे. “मैंनें आपके मुकद्दमों में पैरवी की जिस्के बदले भर पेट महन्ताना ले लिया यदि आपके निकट उन्के मेरे चाल चलन मैं कुछ अन्तर हो तो इतना ही होसक्ता है कि वह कच्चे खिलाडी थे जरा सी हल चल होते ही भग निकले मैं अपना फायदा समझ कर अब तक ठैरा रहा"

"जो लोग फ़ायदा उठा कर इस्समय मेरा साथ दें उन्को भी मैं कुछ बुरा नहीं समझता क्योंकि जिन् पर मुझको बडा बिश्वास था वह सब मुझे अधर धार मैं छोड़ कर चले गए और ईश्वरनें मुझको किसी लायक न रक्खा” लाला मदनमोहन रो कर कहनें लगें.

"ईश्वर को सर्वथा दोष न दो वह जो कुछ करता है सदा अपनें हितही की बात करता है” "लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे श्रीमद्भागवत मैं राजा युधिष्ठिर से श्रीकृष्णचन्द्रनें कहा है “जा नर पर हम हित करें ताको धन हर लेहिं। धन दुख दुखिया का स्वतः सकल बन्धु तज देहिं॥*" सो निस्सन्देह सच है क्योंकि उद्योग की माता आवश्यकता है इसी तरह अनुभव सै उपदेश मिलता है सादी नें गुलिस्तां मैं लिखा है कि “एक बादशाह अपने


 * यस्याहमनुग्टह्णामि तस्य वित्तं हरायहम्
ततीधनं त्यजन्त्यस्य स्वजननादुःखदु:खितम्।