पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३०९

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सुधरनें की रीति.
 

उस्के पतिब्रतापन सै उस्के आगे अपनी प्रीति प्रगट नहीं कर सक्ता था. लोरानें उस्के आकार सै उस्का भाव समझकर उस्को अपनें पास सै दूर रहनें के लिये कहा और पीट्रार्क नें भी अपनें चित्त सै लोरा की याद भूलनें के लिये दूर देशका सफ़र किया परन्तु लोरा का ध्यान क्षणभर के लिये उस्के चित्त सै अलग न हुआ. एक तपस्वी नें बहुत अच्छी तरह उस्को अपना चित्त अपनें बस मैं रखनें के लिये समझाया परन्तु लोरा को एक दृष्टि देखते ही पीट्रार्क के चित्त सै वह सब उपदेश हवामैं उड़ गए, लोरा की इच्छा ऐसी मालूम होती थी कि पोट्रर्क उस्सै प्रीति रक्खे परन्तु दूरकी प्रीति रक्खे. जब पीट्रार्क का मन कुछ बढ़ने लगता तो वह अत्यन्त कठोर हो जाती परन्तु जब उस्को उदास और निराश देखती तब कुछ कृपा दृष्टि करके उस्का चित्त बढ़ा देती इस तरह अपनें पातिब्रत मैं किसी तरह का धब्बा लगाए बिना लोरानें बीस बर्ष निकाल दिये. पीट्रार्क बेरोना शहर मैं था उस्समय एक दिन लोरा उसै स्वप्न मैं दिखाई दी और बड़े प्रेमसै बोली कि "आज मैंनें इस असार संसार को छोड़ दिया. एक निर्दोष मनुष्य को संसार छोड़ती बार सच्चा सुख मिलता है और मैं ईश्वर की कृपा सै उस खुखका अनुभव करती हूं परन्तु मुझको केवल तेरे बियोग का दुःख है" "तो क्या तू मुझ सैं प्रीति रख़ती थी?" पीट्रार्क नें पूछा "सच्चे मन सै" लोरानें जवाब दिया ओर उस्का उस दिन मरना सच निकला. अब देखिये कि एक कोमल चित्त स्त्री, अपने प्यारे की इतनी आधीनता पर बीस वर्ष तक प्रीतिकी अग्निको अपनें चित्त मैं दबा सकी और उसे सर्वथा प्रबल न होने दिया फिर क्या हम