पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३१९

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सुखकी परमावधि.
 


जो अपनें दोषों को यथार्थ जान्ता हो और जान बूझकर उन्का झूठा पक्ष न करता हो बल्कि यथा शक्ति उन्के छोडनें का उपाय करता हो वही सच्चा सज्जन है"

"सिलसिले बन्द सीधामामूली काम तो एक बालक भी कर सत्ता है परन्तु ऐसे कठिन समय में मनुष्य की सच्ची योग्यता मालूम होती है, आप ने मुझको इस अथाह समुद्र में डूबनें सै बचाया है इस्का बदला तो आपको ईश्वर के हां सै मिलैगा मैं सो जन्म तक लगातार आपकी सेवा करूं तो भी आपका कुछ प्रत्युपकार नहीं कर सत्ता परन्तु जिस्तरह महाराज रामचन्द्र ने भिलनी के बेर खाकर उसे कृतार्थ किया था इसी तरह आप भी अपनी रुचिके विपरीति मेरा मन रखने के लिये मेरी यह प्रार्थना अंगीकार करें" लाला मदनमोहन ब्रजकिशोर को आठ, दस हजार का गहना देने लगे.

"क्या आप अपने मनमैं यह समझते हैं कि मैंने किसी तरह के लालच से यह काम किया?" लाला ब्रजकिशोर रुखाई सै बोले "आगे को आप ऐसी चर्चा करके मेरा जी बृथा न दुखावै. क्या मैं गरीब हूं इसी सै आप ऐसा बचन कहकर मुझको लज्जित करते है? मेरे चित्त का संतोष ही इस्का उचित बदला है जो सुख किसी तरह के स्वार्थ विना उचित रीति सै परोपकार करने में मिल्ता है वह और किसी तरह नहीं मिल सत्ता वह सुख, सुख की परमावधि है इसलिये मैं फिर कहता हूं कि आप मुझको उस सुख सै वंचित करने के लिये अब ऐसा बचन न कहैं."

"आप का कहना बहुत ठीक है और प्रत्युपकार करना भी मेरे बूते सै बाहर है परन्तु मैं केवल इस्समय के आनन्द मैं"