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परीक्षा गुरु
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करूँ? चुगलखोरों के हाथ से तंग हूँ जब कोई बहाना निकाल कर आने का उपाय करता हूं वे लोग तत्काल जाकर लालाजी (अर्थात् पिता) से कह देते हैं और लालाजी खुलकर तो कुछ नहीं कहते पर बातों ही बातों से ऐसा झंझोड़ते हैं कि जी जलकर राख हो जाता है आज तो मैंने उनसे भी साफ कह दिया कि आप राज़ी हों, या नाराज हों मुझसे लाला मदनमोहन की दोस्ती नहीं छूट सकती” लाला हरदयाल ने यह बात ऐसी गर्मा गर्मी से कही कि लाला मदनमोहन के मनपर लकीर हो गई. पर यह सब बनावट थी. उसने ऐसी बातें बना, बनाकर लाला मदनमोहन से "तोफा तहायफ” में बहुत कुछ फ़ायदा उठाया था इस लिये इस सोने की चिड़िया को जाल में फसाने के लिये भीतर पेटे सब घर के शामिल थे और मदनमोहन के मन में मिलने की चाह बढ़ाने के लिये उसने अबकी बार आने में जान बूझ कर देर की थी.


"भाई! लोग तो मुझे भी बहुत बहकाते हैं कोई कहता है "ये रुपये के दोस्त हैं" कोई कहता है “ये मतलब के दोस्त हैं” "पर मैं उनको जरा भी मुंह नहीं लगाता क्योंकि मुझ को ओथेलो की बरबादी का हाल अच्छी तरह मालूम है” लाला मदनमोहन ने साफ मन से कहा पर हरदयाल के पापी मन को इतनी ही बात से खटका हो गया.


"दुनिया के लोगों का ढंग सदा अनोखा देखने में आता है उनमें से कोई अपना मतलब दृष्टांत और कहावतों के द्वारा कह जाता है, कोई अपना भाव दिल्लगी और हंसी की बातों में जता जाता है, कोई अपना प्रयोजन औरों पर रखकर सुना जाता है, कोई अपना आशय जता कर फिर पलट जाने का पहलू बनाये