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सावधानी(होशियारी)
 


को वर्तमान दशा के साथ मनुष्य का बड़ा दृढ़ संबंध रहता है इसलिये कभी-कभी औरों के हेतु उसका विपरीत भाव हो जाता है जैसे माँ बाप के विरसे से द्रव्य, अधिकार या ऋण रोगादि मिलते हैं, अथवा किसी और की धरी हुई दौलत किसी और के हाथ लग जाने से वह उसका मालिक बन बैठता है, अथवा किसी अमीर की उदारता से कोई नालायक धनवान बन जाता है, अथवा किसी पास पड़ोसी की गफलत से अपना सामान जल जाता है, अथवा किसी दयालु विद्वान के हितकारी उपदेशों से, कुपढ़ मनुष्य विद्या का लाभ ले सकते हैं, अथवा किसी बलवान लुटेरे की लूट मार से कोई गृहस्थ बेसबब धन और तन्दुरुस्ती खो बैठता है और ये सब बातें लोगों के हक में अनायास होती रहती हैं इसलिये इनको सब लोग प्रारब्ध फल मानते हैं परंतु ऐसे प्रारब्धी लोगों में जिसको कोई वस्तु अनायास मिल गई पर उसके स्थिर रखने के लिये उसके लायक कोई वृत्ति अथवा सब वृत्तियों की सहायता स्वरूप सावधानी ईश्वर ने नहीं दी तो वह उस चीज़ को अन्त में अपनी स्वाभाविक वृत्तियों की प्रबलता से वह वस्तु अधिक हुई तो उसमें उन वृत्तियों का नुक्सान गुप्त रहकर समय पर ऐसे प्रगट होता है जैसे बचपन की बेमालूम चोट बडी अवस्था में शरीर को निर्बल पाकर अचानक कसक उठे,या शतरंज में किसी चाल की भूल का असर दस-बीस चाल पीछे मालूम हो, पर ईश्वर की कृपा से किसी को कोई वस्तु मिलती है तो उसके साथ ही उसके लायक बुद्धि भी मिलजाती है या ईश्वर की कृपा