से किसी कायम मुकाम(प्रतिनिधि) वगैरह की सहायता पाकर उसके ठीक-ठीक काम चलने का बानक बन जाता है जिसे वह नियम निभे जाते हैं परंतु ईश्वर के नियम मनुष्य से किसी तरह नहीं टूट सकते.”
“मनुष्य क्या मैं तो जानता हूं ईश्वर से भी नहीं टूट सकते” बाबू बैजनाथ ने कहा.
“ऐसा विचारना अनुचित है ईश्वर को सब सामर्थ्य है देखो प्रकृति का यह नियम सब जगह एक-सा देखा जाता है कि गर्म होने से हरेक चीज फैलती है और ठंडी होने से सिमट जाती है। यही नियम २१२ डिग्री तक जल के लिये भी है परन्तु जब जल बहुत ठंडा होकर ३२ डिग्री पर बर्फ बनने लगता है तो वह ठंड से सिमटने के बदले फैलता जाता है और हल्का होने के कारण पानी के ऊपर तैरता रहता है. इससे जल जंतुओं की प्राणरक्षा के लिये यह साधारण नियम बदल दिया गया ऐसी बातों से उसकी अपरमित शक्तिका पूरा प्रमाण मिलता है उसने मनुष्य के मानसिक भावादि से संसार के बहुत से कामों का गुप्त संबंध इस तरह मिला रखा है कि जिसके आभास मात्र से अपना चित्त चकित हो जाता है. यद्यपि ईश्वर के ऐसे बहुत से कामों की पूरी थाह मनुष्य की तुच्छ बुद्धि को नहीं मिली तथापि उसने मनुष्य को बुद्धि दी है. इस लिये यथाशक्ति उसके नियमों का विचार करना, उनके अनुसार बरतना और विपरीत भाव का कारण ढूंढना उसको उचित है, सो मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार एक कारण पहले कह चुका हूँ. दूसरा यह मालूम होता है कि जैसे तारों की छांह चन्द्रमा की चांदनी में और चन्द्रमा की चांदनी