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परीक्षा गुरु
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प्रबन्ध उचित रीति से कर लेंगे तो प्रबन्ध करने की रीति आ जायेगी और हरेक काम का प्रबन्ध अच्छी तरह कर सकेंगे. परंतु जब तक प्रबंध करने की रीति न आवेगी कोई काम अच्छी तरह न हो सकेगा.” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “हाकिमों की प्रसन्नता पर आधार रख अपने मुख से अधिकार माँगने में क्या शोभा है? और अधिकार लिये पीछे वह काम अच्छी तरह पूरा न हो सके तो कैसी हँसी की बात है? और अनुभव हुए बिना कोई काम किस तरह भली भांति हो सकता है? महाभारत में कौरवों के गौ घेरने पर बिराट का राज कुमार उत्तर बड़े अभिमान से उनको जीतने की बातें बनाता था, परंतु कौरवों की सेना देखते ही रथ छोड़कर उघाड़े पांव भाग निकला! इसी तरह सादी अपने अनुभव से लिखते हैं कि “एकबार मैं बलख से शामवालों के साथ सफर को चला. मार्ग भयंकर था. इस लिये एक बलवान पुरुष को साथ ले लिया. वह शस्त्रों से सजा रहता था और उसकी प्रत्यंचा को दस आदमी भी नहीं चढ़ा सकते थे वह बड़े-बड़े वृक्षों को हाथ से उखाड़ डालता परंतु उसने कभी शत्रु से युद्ध नहीं किया था. एक दिन मैं और वो आपस में बातें करते चले जाते थे. उस समय दो साधारण मनुष्य एक टीले के पीछे से निकल आए और हमको लूटने लगे. उसमें एक के पास लाठी थी और दूसरे के हाथ में एक पत्थर था परंतु उनको देखते ही उस बलवान पुरुष के हाथ पांव फूल गए! तीर कमान छूट पड़ी! अन्त में हमको अपने सब वस्त्र-शस्त्र देकर उनसे पीछा छुड़ाना पड़ा. बहुधा अबभ भी देखने में आता है कि अच्छे प्रबन्ध बिना घर में माल होने